शनिवार, 9 मई 2020

नशे से मुक्ति की ओर

दीनदयाल उज्जैन के सहकारी बैंक में मैनेजर थे, उनका एक पुत्र था अविनाश और दो पुत्रियां, पद्मिनी और सुरेखा। उनकी बेटियां बहुत ही खूबसूरत थी तो उन्हें उनके लिए रिश्ता ढूंढने के लिए ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी।  20 की उम्र पार करते ही दोनों की शादी अच्छे घरों में तय हो गई, दोनों बेटियां पढ़ने में भी तेज थी लेकिन जल्दी शादी होने की वजह से ग्रेजुएशन के बाद पढ़ नहीं पाई और घर गृहस्थी में ही रम गई हालांकि वो इतने जल्द शादी नहीं करना चाहती थी लेकिन पिता की जिद के आगे उन्हें झुकना ही पड़ा, कभी कभी दीनदयाल को भी लगता कहीं उसने जल्दबाजी तो नहीं कर दी लड़कियों की शादी में, तो बेटियों को अपने अपने घरों में खुशहाल देखकर कर ये शंका भी दूर हो जाती और वो ये सोचते कि अच्छे वर और अवसर मिलना भाग्य की ही बात होती है।  नौकरी करने के अलावा उनके पास खेती योग्य कुछ एकड़ जमीन और दो घर भी थे। सब कुछ था उनके पास खुश रहने के लिए लेकिन एक ही बात खलती थी कि लाड़ प्यार में उनका लड़का अविनाश बहुत बिगड़ चुका था, उसने एक इंजिनियरिंग कॉलेज में दाखिला लिया लेकिन उसका पढ़ाई में मन नहीं लगा तो दूसरे साल ही उसने पढ़ाई छोड़ दी और यहां वहां भटकने लगा, रात को देर से घर आता, आवारा लड़कों के साथ घूमना उसका शौक बन चुका था,

26 साल की उम्र पार कर चुका था काम धंधे का कुछ अता पता नहीं था एक दो जगह नौकरी की लेकिन मन नहीं लगा तो छोड़ दी, दीनदयाल ने उसे खेती बाड़ी में भी लगाने का प्रयत्न किया लेकिन उसे अपनी आवारागर्दी से फुर्सत ही कहां थी, कई बार बेटे को समझाया डांटा यहां तक की जब वो शराब के नशे में धुत होकर घर आया तो दरवाजा भी नहीं खोला। उनकी पत्नी भी अपने बेटे की इस आदत से बेहद परेशान थी, वो यही सोचा करती थी कि कैसे उनका सीधा सादा बेटा खराब संगत में आकर एक नशेड़ी बन चुका है, कई बार उसकी तबीयत भी शराब के ओवरडोज़ से खराब हो चुकी थी डॉक्टर भी कह चुके थे कि अगर ये लत नहीं छूटी तो इसका असर उसकी किडनियों पर भी हो सकता है, ऐसे बात सुनकर वो फिर अपने माता पिता से ही कुतर्क करता कि अगर मरना हो तो कैसे भी मर सकते है क्या जो शराब नहीं पीते उनकी अकाल मृत्यु नहीं होती है?

उनके दुख की सीमा उस दिन पार कर गई जब लोगों के फोन उनके यहां आने लगे कि आपका लड़का शराब पीकर सड़क किनारे बेसुध पड़ा है या किसी के घर के सामने पड़ा हुआ है। अब उन्हें अपने लड़के को खुद घर लाना पड़ता नशे की हालत में, वो सोचते काश उनकी दो बेटियां ही होती ऐसा कपूत होने का फ़ायदा ही क्या ?

उनके घर की सपन्नता और लड़के की आकर्षक कद काठी देखकर उनके यहां रिश्ते आने लगे लेकिन वो मन ही मन डरने लगे कि ऐसे लड़के की शादी करके क्या किसी लड़की ज़िंदगी बर्बाद करना ठीक रहेगा ? लोग भी उन्हें सलाह देने लगे कि शादी के बाद सुधर जाएगा, दीनदयाल भी लड़की वालों से यही कहते कि उनका लड़का शराब तो क्या चाय को भी हाथ नहीं लगाता लेकिन उनकी अंतरआत्मा  इस बात को मान नहीं पा रही थी कि कैसे किसी की लड़की की ज़िंदगी बर्बाद करे।

एक दिन उन्हें एक उपाय सुझा जिसके तहत उन्होंने अपने लड़के से झूठ मूठ कह दिया कि मैंने अपने सारी संपत्ती से तुम्हें बेदखल कर दिया और मैं सारी वसियत अपनी लड़कियों के नाम करने जा रहा हूं। तुम्हारे पास बस एक ही रास्ता है कि तुम शराब छोड़ दो दस दिन के भीतर या फिर परिणाम के लिए तैयार रहो।

ना जाने उस दिन क्या हुआ कि अविनाश का स्वाभिमान जाग उठा और उसने कह दिया क्या आप ये सोच रहे है कि मैं आपके टुकड़ो पर पल रहा हूं मैं खुद ही ये सब छोड़ता हूं लेकिन तब तक आपसे मिलने नहीं आउंगा जब तक आपसे ज्यादा नहीं कमाने वाला ना बन जाउं।

उस रात अविनाश ने ना आव देखा ना ताव बस अपने घर से निकल पड़ा, तब दीनदयाल  की पत्नी ने कहा कि आपने गुस्से में आकर क्या कह दिया पता नहीं कहां निकल गया वो, अब घर वापस आएगा कि नहीं?”

अविनाश गणित में बहुत अच्छा था लेकिन उसका मन गलत संगत में आकर पढ़ाई से उचट चुका था। जब वो घर से निकला तो उसने सोचा कि क्या वह जो बड़ी बड़ी बातें कह चुका है क्या उसे पूरा कर पाएगा, वह अपने बचपन के दोस्त किशोर के यहां पहुंचा और उसके साथ करीब एक महीने उसके फ्लैट पर रहा, उसका दोस्त सॉफ्टवेयर से जुड़ा काम करता था, वहां रहकर अविनाश ने छोटी मोटी नौकरी करना शुरु कर दी, सारी जिम्मेदारी खुद पर पड़ते ही उसकी अक्ल ठिकाने आ गई थी, शराब की लत लगभग छूट गई। धीरे धीरे उसने अपने दोस्त किशोर का काम सीखना शुरु किया, किशोर भी उसकी मेहनत और छिपी हुई प्रतिभा देखकर हैरान था उसका तकनीकी नॉलेज डिग्रीधारी लोगों से भी तेज था, दोनों ने अपनी खुद की कंपनी शुरु की जिससे धीरे धीरे अन्य देशों भी से उन्हें काम मिलना शुरु हो गया, पांच वर्षों में उन्होंने काफी तरक्की कर ली थी।  अब अविनाश के पास खुद के तीन फ्लैट हो गए थे।

लेकिन वो काम में इतना मशगूल हो गया कि अपने घर पर जाना ही भूल गया। पांच साल तक अविनाश के आने की आस दीनदयाल खो चुके थे। एक दिन अविनाश की कंपनी में पुलिस आई और पूछने लगी “मिस्टर अविनाश क्या यही नाम है आपका”? अविनाश थोड़ा चौंक गया और बोला जी यही नाम है मेरा।

पुलिस वालों ने कहा कि हम आपकी ही तलाश में यहां आए है। अविनाश ने कहा मेरी तलाश में क्यों ?”

आपके पिता दीनदयाल ने आपकी गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई है।

तभी पुलिस वाले ने अविनाश के पिता को आवाज दी “मिस्टर दीनदयाल क्या यही है आपका बेटा” ?

अविनाश अपने पिता को देखकर हैरान हुआ बोला “सॉरी पापा मेरी वजह से आपको इतनी परेशानी उठानी पड़ी”।

उसके पिता ने कहा माफ़ी तो मुझे मांगनी चाहिए कि गुस्से में बिना सोचे समझे मैंने अपना फ़ैसला सुना दिया।

अविनाश ने कहा नहीं पिताजी गलती तो मेरी थी जो मैंने नशे को अपना साथी बनाया।

अविनाश के पिता कहा ये किसकी कपंनी में काम करता है तू अविनाश ने कहा ये मेरी ही कपंनी है और मेरे दो फ्लैट भी है यहां

आज मैं तुम्हारी प्रगति देखकर बेहद खुश हूं बेटा तुम्हें याद है ना तुमने कहा था कि तुम मुझसे भी ज्यादा हैसियत बनाकर दिखाओगे वो आज तुमने करके दिखा दियादीनदयाल ने कहा।

अविनाश ने कहा नहीं पिताजी आज मैं एक नशेड़ी से एक स्वस्थ मानसिकता का इंसान बन चुका हूं यही मेरे लिए बड़ी बात है पैसा तो कभी भी कमाया जा सकता है आपने अगर उस दिन कड़ा फैसला नहीं लिया होता तो शायद मैं अपनी क्षमता को नहीं पहचान पाता

अविनाश के पिता ने बड़ी ही बेताबी से उसे गला लगा लिया और उसके बिना कटे दिनों को याद करके उनकी आंखों में आंसू आ गए।

शिल्पा रोंघे

 

 

 

 

 

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