सोमवार, 11 मई 2020

लकी ड्रेस - एक प्रेरणादायी कथा

 

संजीवनी का आज कॉलेज में  प्रथम वर्ष का फायनल एग्ज़ाम है, उसका पेपर सुबह 8 बजे है, लेकिन ये क्या वो तो 6.30 बजने के बाद भी उठी ही नहीं। उसकी मां ने आवाज़ देकर उसे जगाया कहा बेटा तुम्हारा आज इम्तिहान है और तुम सो ही रही हो, रोज तो सुबह 4 बजे उठ जाती हो आज क्या हुआ

संजीवनी ने कहा मम्मी मैं एक्ज़ाम नहीं देना चाहती है हूं आज क्योंकि मुझे लगता है कि ये पेपर बहुत कठिन होगा मैं शायद इसमें पास नहीं हो पाउंगी, इससे अच्छा है कि पेपर ही ना दो।

संजीवनी की मम्मी लेकिन तुमने तो साल भर मेहनत की है, मुझे नहीं लगता कि ये तुम्हारे लिए कठिन होगा

संजीवनी मम्मी मुझे ऐसा लगता है कि पेपर ना ही दो तो अच्छा है

संजीवनी की मम्मी देखो बेटा मैं तुम्हें एक राज की बात बताना चाहती हूं वो जो तुम्हारी नीले रंग की स्कर्ट है ना वो बहुत ज्यादा लकी है अगर वो पहनकर तुम परीक्षा देने जाओगी तो ज़रुर अपना पेपर क्लियर कर लोगी संजीवनी ऐसा कैसा हो सकता है मम्मी?”

संजीवनी की मम्मी ऐसा मुझे एक ज्योतिषी ने कहा था। तुम सिर्फ पेपर दे कर आ जाओ ज्यादा चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा

संजीवनी जल्दी से अपने बिस्तर से उठी और फटाफट नहाकर दो बिस्किट खाकर एग्ज़ाम देने चली गई।

घर आकार उसकी मम्मी ने पूछा क्या हुआ तब वो बोली  मैनें सारे सवाल अपनी तरफ से हल कर दिए कितने सही है मुझे नहीं पता है

उसकी मां ने कहा चलो तुमने एग्ज़ाम तो दिया अब तुम असफल हो या सफल इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता है। कुछ दिनों बाद रिजल्ट आया तो उस विषय में संजीवनी के अच्छे नंबर आए जो उसे बहुत कठिन लगता था। उसने अपनी मम्मी का शुक्रिया अदा किया कि उन्होंने उसे वो लकी ड्रेस दिया

तब उसकी मम्मी ने कहा कि उसने उसके भले के लिए झूठ बोला कि वो लकी ड्रेस है असल में ऐसा कुछ भी नहीं, ऐसा तो उसने सिर्फ उसका हौंसला बढ़ाने के लिए किया और कहा कि हमें जीवन में सफलता और असफलता की चिंता किए बगैर की संघर्ष करना चाहिए, तभी हम सफल हो पाएंगे

तब से संजीवनी ने अपने ज़हन में ये गांठ बांध ली कि उसका काम सिर्फ कर्म करना है ना कि परिणाम के बारे में सोचना।

शिल्पा रोंघे

 © सर्वाधिकार सुरक्षित, कहानी के सभी पात्र काल्पनिक है जिसका जीवित या मृत व्यक्ति

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