सोमवार, 23 अगस्त 2021

पसंद अपनी-अपनी


 

महेश और सुरेश एक ही क्लॉस में पढ़ा करते थे। महेश साधारण कद काठी का आकर्षक लड़का था, जो केवल अपनी पढ़ाई पर ही ध्यान देता था।

वहीं सुरेश एक ज़िंदादिल लड़का था जो हर वक्त पार्टी, तो कभी सिनेमा देखने में व्यस्त रहता था वो क्लॉस का सबसे सुंदर लड़का था, जिसको कई लड़कियां पसंद करती थी। तो वही महेश का स्वभाव शर्मिला था, तो उसकी बहुत ही कम लड़कियों से दोस्ती हो पाती थी और वो ये सोचता था कि ये वक्त करियर बनाने का है तो प्यार से जितना दूर रहा जाए उतना अच्छा है, वो तो बाद में भी किया जा सकता है। तो वहीं सुरेश कभी- कभार ही कॉलेज आता था, उसे लगा वो सबसे खूबसूरत लड़कों में से एक है तो यही काफी है।

कई साल बीत गए एक दिन महेश सुरेश से मिलने गया तो पता चला कि महेश एक मशहूर साइंटिस्ट बन चुका है

तो वहीं सुरेश एक 9 से 5 वाली साधारण नौकरी कर रहा था जिससे वो ख़ुश नहीं था। उसने देखा कि महेश की शादी तो एक बहुत सुंदर  और योग्य लड़की से हो गई और उसे अभी तक अपने योग्य लड़की ही नहीं मिली।

उसे महेश के घर जाकर बहुत अच्छा लगा उसकी पत्नी ने भी उसको बहुत अच्छा खाना बनाकर खिलाया।

जब वो अपने घर पहुंचा तो उसने अपनी बहन से कहा दीदी देखो महेश को एक अच्छी लड़की मिल गई, लेकिन मुझे क्यों नहीं ? मुझ पर तो कई लड़कियां मरती थी कॉलेज के दिनों में।’’

देखो सच्चाई कड़वी होती है, भले ही लड़कियां कितने ही अति सुंदर लड़के की तरफ आकर्षित हो जाए लेकिन शादी उसी व्यक्ति से करना पसंद करती है, जिसके साथ उन्हें अपना कोई भविष्य दिखे, तो अभी भी देर नहीं हुई है तुम गंभीर होकर अपना काम करो और ज़िंदगी में कोई मुकाम हासिल करो, देखो फिर तु्म्हारा भी जीवन कैसे नहीं बदलता है, या फिर जो तुम कर रहे हो उसमें ख़ुश रहना सीख लो, कम से कम जो लड़की तुम्हें पसंद करेगी वो तुम्हारे स्वाभाविक रुप में तुम्हें पसंद करेगी, ना कि जो तुम नहीं हो उसके लिए तुम्हें पसंद करेगी।’’

सच कहा दीदी खुद को खुद की खुशी के लिए ही बदलना चाहिए ना कि किसी और के लिए तभी हम जीवन में ख़ुश रह पाएंगे।

शिल्पा रोंघे

 © सर्वाधिकार सुरक्षितकहानी के सभी पात्र काल्पनिक है जिसका जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है।

 

मंगलवार, 17 अगस्त 2021

पुनर्विवाह

“क्या कर रही हो शैलजा ? ’’ नानी ने पूछा।

मैं इस गुड्डें और गुड़ियां की शादी कर रही हूं।‘’

अच्छा करों।’’

शादी -शादी खेल रही हूं। आज मेरी दोस्त नहीं आई ना, नहीं तो मैं उसके साथ ही बाहर खेलने जाती हूं, तो आज सोचा कि घर पर अकेले ही खेल लेती हूं।’’

 

शैलजा 10 साल की थी  तब से वो इन गुड्डे –गुडियों से खेला करती थी। जब वो 20 साल की थी तब फिर एक बार अपनी नानी के घर पहुंची और बोली वो गुड़िया कहां है जिससे मैं खेला करती थी।’’

ऐसी एक नहीं अनेक गुड़ियां और गुड्डें है, पूरी अलमारी भरी पड़ी हुई है। ये देखो।’’ नानी ने कहा।

किसने बनाई?” शैलजा ने कहा।

“ये मेरी मौसी ने बनाई थी। 12 साल की थी वो जब उसका ब्याह हुआ था,

बच्ची थी, उस वक्त बाल विवाह प्रचलन में था, तो  जल्दी उसका ब्याह हो गया था

उसकी बिदाई भी नहीं हुई थी कि उसके 15 साल के पति की बुखार से मौत हो गई।’’ नानी ने कहा।

“तो फिर उसका पुनर्विवाह नहीं हुआ।’’ शैलजा ने पूछा।

 “नहीं तब ये चलन में नहीं था, तब तो विधवा महिला को रंगीन कपड़ें भी पहनने को मिलते नहीं थे, सफेद साड़ी पहननी पड़ती थी और लंबे बाल भी नहीं रख सकती थी वो, ताकी कोई उसकी तरफ आकर्षित ना हो।’’

“ये तो गलत बात है।’’ शैलजा ने कहा।

“घर का काम खत्म करने के बाद जितना वक्त बचता था, उसमें वो मिट्टी के गुड्डें और गुड़िया बनाया करती थी।

करीब 500 गुड्डें और गुड़िया बना चुकी थी वो, जिसे उसने सारे रिश्तेदारों को उपहार में दे दिया।

अब तो वक्त काफी बदल चुका है, अब तो काफी आजादी है महिलाओं को।’’ नानी ने कहा।

पूरी तरह से अभी भी बदलाव नहीं आया है, आज भी लोग एक महिला के पुनर्विवाह को लेकर सवाल उठाते है।’’ शैलजा ने कहा।

चलो कुछ खाते है, तुम तो बहुत गहराई वाली बातें करने लगी, चलो मुझे एक कप चाय बनाकर दो।’’ नानी ने कहा।

हां देती हूं, लेकिन इस बार गुड़िया साथ लेकर जाउंगी गुड्डें और गुड़िया के खेल में बहुत मजा आता है मुझे।

एक बार फिर उनकी शादी करवाउंगी।’’  शैलजा ने कहा।

 

“अगली बार तुम आओगी, तो बड़ों की तरह व्यवहार करोगी, ऐसी उम्मीद रख सकती हूं ना मैं तुमसे ? नानी ने पूछा


"हां रख सकती हो लेकिन नारी मुक्ति पर लिखे मेरे भाषण के लिए तैयार रहना।’’ शैलजा ने कहा

“अरे हां बाबा भाषण क्या तुम तो पूरी किताब ही लिख डालो।’’ नानी ने कहा

ऐसा कहकर दोनों धीमे से एक दूसरे की तरफ देखकर मुस्कुराई।

शिल्पा रोंघे

 

 © सर्वाधिकार सुरक्षितकहानी के सभी पात्र काल्पनिक है जिसका जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है।

 

गुरुवार, 5 अगस्त 2021

रूहानी प्यार



कितने प्यारे इंसान हो आप, आपकी मुस्कान भी बहुत अच्छी है।’’

धन्यवाद ये सुनकर सचिन की खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा।

दिशा की कथक नृत्य के वीडियो उसके फेसबुक पेज पर डाले गए थे।

कितनी सुंदर थी वो विशाल नयन और चंद्रमा से भी ज्यादा उजला उसका चेहरा।

सचिन श्याम वर्ण का तीखे नैन नक्श वाला लड़का था।

मन ही मन उसे चाहने लगा।

फिर उसने दस दिन बाद उसे मैसेज किया आपका नृत्य बहुत अच्छा है।

जवाब मिला “धन्यवाद।’’

क्योंकि वो उसके बगल वाले शहर में ही रहती थी

तो सोचा कि एक दिन मुलाकात हो जाए।

उसकी फंतासी को एक महीना हो चुका था उसे लगा वो भी उसे चाहती होगी क्योंकि कभी-कभी उसकी पोस्ट पर

उसका लाईक दिखाई देता था।

एक दिन उसने निश्चित किया कि वो उससे मिलने ज़रुर जाएगा।

जैसे- तैसे उसने उसके घर का पता ढूंढ लिया।

तभी उसकी छोटी बहन चौंक कर बोली

“एक अनजान इंसान को इस तरह बिना बताए किसी के घर नहीं आना चाहिए।’’

वो बोला “आपकी बहन से तो कभी- कभी बात हो जाती है।’’

“इसका अर्थ ये तो नहीं वो तुमसे प्रेम करती है, पहले सहमति तो ले लेते मिलने से पहले। वो तो अच्छा है कि अभी हमारे माता पिता घर से बाहर गए हुए है, नहीं तो तुमको देखकर नाराज हो जाते।’’

“क्या मैं एक बार तुम्हारी बहन से मिल सकता हूं ?”

“वो तो एक साल से कोमा में है”

“क्या लेकिन वो तो मुझसे बात करती है।’’ सचिन ने कहा।

“जब उसकी तबीयत बिगड़ रही थी, तो उसने कहा था कि मैं उसके पुराने वीडियो पेज पर डालती रहूं और जो भी उसे मैसेज करे उसे धन्यवाद देना ना भूले, और एक दिन वो सचमुच कोमा में चली गई।’’

“उसे कब होश आएगा ?”

“पता नहीं कुछ कह सकते शायद कुछ दिन, कुछ हफ्ते या फिर साल कुछ नहीं कहा जा

सकता है।” दिशा कि बहन ने कहा।

कुछ देर बाद सचिन उस अस्पताल पहुंचा जहां वो भर्ती थी।

दिशा का चेहरा पीला पड़ चुका था और काया सूख चुकी थी, वो ज्यादा देर वहां खड़ा नहीं रह सका।

आंखों में आंसू लेकर वो वहां तेजी से निकल आया और सोचने लगा कि उसने तो वो बात सोच ली कि जो कही भी नहीं गई, क्या होगा अफसाने का जो उसने मन ही मन रच लिया था खैर दोष दे भी तो किसे आनलाईन मायाजाल ही ऐसा है कि इंसान फंतासी को ही हकीकत समझ लेता है और एक दिन उसने अपना सोशल मीडिया प्रोफाईल ही डिलिट कर दिया ये सोचकर कि अब फिर किसी ख़ूबसूरत फ़साने से दिल लगाकर अपने दिल को दर्द के समुंदर में फिर से डूबा ना बैठे।

शिल्पा रोंघे

© सर्वाधिकार सुरक्षितकहानी के सभी पात्र काल्पनिक है जिसका जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है।

व्यंग्य-आदर्श महिला बनने की ट्रेनिंग

  नीरज ने सोचा कि शहर की लड़कियों को आदर्श कैसे बनाया जाए, इसकी ट्रेनिंग दी जाए, तो कई लड़कियों की रुचि उसमें जगी। शहर की कई लड़कियों ने...