मंगलवार, 27 जुलाई 2021

कयास



मधुमिता और स्मिता बहुत अच्छी सहेलियां थी। दोनों में खूब जमती थी।

एक दिन मधुमिता ने स्मिता के को एक प्रोफेशनली क्वालिफाइ़ड, सुंदर और सुशील लड़के की तस्वीर दिखाई।

तभी स्मिता के चेहरे पर उदासी आ गई वो कहने लगी हां तुम फोटोजनिक हो ना, तुम्हारे फोटो देखकर ही तुम्हें लोग पसंद कर लेते होंगे ना।’’

मधुमिता ने कहा स्मिता मैं भी ठीक-ठाक दिखने वाली लड़की हूं, तुम्हारे जैसी सुंदर और गोरी लड़की के मन में ये विचार क्यों आ गया? ’’

यार मुझे तो एक भी लड़का पसंद नहीं आया, ना मुझे किसी ने अभी पसंद किया।’’ स्मिता ने कहा 

मधुमिता ने कहा हम चाहे कितने ही योग्य क्यों ना हो, हम सबको पसंद आए ऐसा ज़रुरी नहीं है, इसका अर्थ ये नहीं है कि किसी के पसंद करने या ना करने से हमारे योग्यता तय होती है।हमें ना और हां दोनों ही चीज़ें सुनने के लिए तैयार रहना चाहिए और ये शब्द खुद भी कहने में झिझक महसूस नहीं करना चाहिए।’’

बहुत आसान है, पहले मुझे तुम अपनी जगह रखकर देखो।’’ स्मिता ने कहा।

“हां, तुमको ही रखा है, उस लड़के को तुम्हारी तस्वीर भेज दी है जो तुमने मुझे दी थी और उसने तुमको पसंद भी कर लिया है और तुमसे मिलना भी चाहता है। अगर तुमको पसंद हो तो बात आगे बढ़ाती हूं।’’

“और तुम्हारे लिए ?”

“मेरी चिंता मत करो, शायद वो तुम्हारे लिए ही बना हो, तुमको तो पता है कि मुझे बड़ी देर लगती है किसी को पसंद करने में, मुझे समझना हर किसी के बस की बात नहीं हैं।’’

स्मिता को लगा सचमुच कयास लगाना कितना गलत होता है, जब कोई सचमुच आपके बारे में अच्छा सोच रहा हो उस इंसान के बारे में। ये अच्छी खासी दोस्ती में दरार डाल सकता हैं। स्मिता ने हल्की सी मुस्कान के साथ मधुमिता को गले लगा लिया।

शिल्पा रोंघे

© सर्वाधिकार सुरक्षित, कहानी के सभी पात्र काल्पनिक है जिसका जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है।

बुधवार, 21 जुलाई 2021

घनी पलकें


 

 

राधिका और उसकी सहेली रसिका एक दिन किस्मत देखने वाले एक इंसान के पास गए। वैसे राधिका का इन बातों पर ज्यादा यकीन नहीं था, क्योंकि रसिका जिद कर रही थी, तो वो चली गई।

वो इंसान बड़े-बड़े बालों वाला था, और ढीले ढाले कपड़े पहना था।

अच्छा बताओं कि मुझे चाहने वाला साथी कैसा होगा।’’  

राधिका और उसकी सहेली रसिका एक दिन किस्मत देखने वाले एक इंसान के पास गए। वैसे राधिका का इन बातों पर ज्यादा यकीन नहीं था, क्योंकि रसिका जिद कर रही थी, तो वो चली गई।

वो इंसान बड़े-बड़े बालों वाला था, और ढीले ढाले कपड़े पहना था।

अच्छा बताओं कि मुझे चाहने वाला साथी कैसा होगा।’’ राधिका ने कहा।

जो भी होगा उसकी पलकों पर घने बाल होंगे और माथा बड़ा बस इतना ही बताउंगा। आगे तुम पर है पहचान सको तो पहचान लेना।’’

रसिका को तो उसने उस इंसान के सात जनम बता दिए लेकिन राधिका को पूरी बात नहीं बताई।

“अरे यार कितने लड़कों के माथे बड़े होते है और पलकें घनी, मैं कैसे पहचानूंगी, मैं किसी लड़के को एकटक नहीं देख सकती हूं ये पहचनाने के लिए।’’ राधिका ने कहा।

 

“हां यार सारी सभ्यता हम लड़कियों के लिए ही है जैसे एक लड़का अगर लड़की तरफ देखे तो रुमानी इंसान, बड़े फ़क्र से वो ये बताते है कि वो फ्लर्ट है।’’ रसिका ने कहा।

 

“जो तेरे लिए रिश्तें आते है उनकी तस्वीरें देख ध्यान से, हो सकता है किसी की पलके घनी हों।’’ रसिका ने कहा।

फोटो में इतना समझ में नहीं आता।’’ राधिका ने कहा।

इस बात को एक साल बीत गया।

एक दिन  रसिका ने पूछा “मिला कोई घनी पलकों वाला, नहीं यार।’’ राधिका ने कहा।

 

राधिका के बगल के फ्लैट में रहने वाला प्रीतेश उसके लिए सॉफ्ट कार्नर रखता था, लेकिन उसकी पलकें घनी नहीं थी। राधिका भी उसके लिए गंभीर नहीं थी, वो जब भी बात करना चाहता, हंसकर टाल देती थी।

एक दिन जब राधिका दो-तीन दिन शहर से बाहर गई और अपने घर लौटी तो अपने फ्लैट का ताला खोलने लगी तो देखा कि प्रीतेश उसके सामने खड़ा था उसका कुरियर लेकर।

“तुम नहीं थी, तो कुरियर वाला मेरे पास छोड़ गया।’’ प्रीतेश ने कहा।

तभी राधिका का ध्यान प्रीतेश पर गया तो उसकी पलकें अचनाक ही बहुत घनी-घनी नज़र आने लगी।

तो राधिका ने पूछा “तुम्हारी पलकें इतनी घनी कैसे।’’

 “वो मैंने कैस्टर आइल लगाया था तो हो गई।’’

 प्रीतेश ने कहा।

“बहुत नुस्ख़े पता है तुमको ख़ुबसूरती के, जो मुझे लड़की होकर भी नहीं पता है।’’ राधिका ने कहा।

“वो तो है’’ कहकर वो वहां से निकल गया।

असल में उसने नकली आई-लैशेस लगा ली थी। घनी पलकों वाला राज वो भी जान चुका था।

तभी शाम को रसिका का फोन आया तो वो राधिका को बोली मिल गया वो घनी पलकों वाला इंसान।’’

“अच्छा कौन है वो ?’’ रसिका ने कहा।

“अरे बगल में छोरा, शहर में ढिंढोरा।’’ राधिका ने कहा।

“मतलब’’ रसिका ने कहा।

“कल आओ तुम्हें मतलब बताती हूं इसका।’’ राधिका ने कहा।

और दोनों सहेलियों की हंसी की आवाज ने कई दिनों की उलझन, सुलझने का सबूत दे दिया।

शिल्पा रोंघे

© सर्वाधिकार सुरक्षित, कहानी के सभी पात्र काल्पनिक है जिसका जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। 

रविवार, 18 जुलाई 2021

कागज पर लिखी बात

 


एक दिन रवि स्टेज पर खड़े होकर भाषण दे रहा था।

इस देश में भाषा रीति-रिवाज सब की दीवारें गिर जानी चाहिए।

क्यों हम ढो रहे है इनको ?

घर की बेटी और बेटा बढ़ा रहे परिवार का अभिमान लेकिन भूल गए है क्या होता है

प्यार। दिल की बस एक ही भाषा होती है वो है प्यार।’’

रवि और सीमा दो अलग भाषा बोलने वाले होते है लेकिन अच्छे दोस्त भी।

तभी स्टेज से उतरकर रवि सीमा से कहता है “शायद तुम्हें मेरी बातें अच्छी ना लगी हो, तुम्हारे रुढ़िवादी विचारों के हिसाब से जो नहीं थी। हमेशा टाल जाती हो जब मैं तुमसे कुछ पूछना चाहता हूं, दोस्त से बढ़कर भी क्या तुम मुझे कुछ मानती हो

सीमा कहती है “चलो मैं तुम्हारे दिल की बात का जवाब दूंगी लेकिन तुम्हारी मां के सामने।’’

“और तुम्हारे माता पिता?” रवि ने कहा।

“उनकी चिंता मत करो तुम्हारी मां की सहमति पहले है।” सीमा ने कहा।

“क्या मैं कुछ वक्त ले सकता हूं” रवि ने कहा।

सीमा ने कहा “बिलकुल लो।’’

रवि की दूसरे शहर में जॉब लग गई, एक दिन एक साल बाद दिवाली पर रवि का फोन आया और वो कहने लगा “तुम्हे दिवाली की बधाई।”

“तुम्हारी मम्मी ने क्या कहा मेरे बारे में।” सीमा ने कहा।

“अरे मेरी हिम्मत नहीं हुई खैर छोड़ो हम दोस्त थे और दोस्त रहेंगे।

अगर किस्मत में रहा तो ज़रुर मिलेंगे।’’ रवि ने कहा।

तभी सीमा ने सोचा कुछ बातें भाषण में ही अच्छी लगती है, लोग कह तो आसानी से देते है लेकिन खुद अमल में नहीं ला पाते है। इसलिए कहते है  कहने से ज्यादा कर्मों पर ध्यान देना ज्यादा ज़रुरी है। जब भी बोलो सोच समझकर बोलना चाहिए।

सीमा ने रवि से कहा चलो “तुम्हें किसी दिन भगवान हिम्मत दे, कि तुम अपने दिल की बात सावर्जनिक

मंच के बजाए घर पर भी कह सको, और हां तुम्हारा ईमेल आयडी दे दो, मेरी शादी का कार्ड भेजना है तुम्हें जो

10 दिन बाद है।’’

रवि को सुनकर बहुत बुरा लगा, कर भी क्या सकता था वक्त जो निकल चुका था।

तभी रवि ने सोचा कि वो जब भी पिता बनेगा तो अपने बच्चों को फ़ैसले लेने का हक उन्हें खुद ही देगा ताकि उनका प्यार भी आधा अधूरा ना रहे, ये बात उसने कुछ दिनों बाद अपनी मां को बताई।

तभी उसकी मां ने कहा “ये बात अगर तुम मुझे बताते, तो ये नौबत ही ना आती, खैर अब चिड़िया चुग गई खेत वाली बात हो चुकी है, अनुशासन का मतलब ये थोड़ी ही है कि तुम अपने दिल की बात भी मुझे ना बताओं, खैर जाने दो पुरानी बातें याद करने से कुछ नहीं मिलता है अब बदलाव तुमको ही लाना है।’’

शिल्पा रोंघे

 

 

 

रविवार, 4 जुलाई 2021

संस्कार कपड़े तय नहीं करते है।


 

रीमा आज अपने रिश्तेदार की शादी में पहुंची तभी वहां उसे कई महिलाओं ने घेर लिया।

अरे ये क्या इतना चटखदार सलवार सूट पहनकर आ गई, अगर साड़ी पहन लेती तो कितना अच्छा होता।’’

कई विवाह योग्य लड़के भी आते है यहां, तुम्हारा परिचय करा देते उनके माता पिता से। एक महिला ने कहा।

तभी एक लड़के  की धीमी सी आवाज आती है ऐसी लड़कियां मैरिज मटेरियल नहीं होती है। इनके मां-बाप को बाहर पढ़ने भेजना ही नहीं चाहिए, देखो ना कुछ साल महानगर में क्या रह ली रहने का ढंग ही बदल गया। लड़की तो वो अच्छी होती है जो घर के कामकाज पर ध्यान दें और सबकी खुशियों का ध्यान रखे। यही एक औरत का कर्तव्य है।’’

रीमा ने उसकी बातों को अनसुना कर दिया और आगे बढ़ गई, तभी उसकी मां ने कहा

देखो तुम्हारी उम्र की सभी लड़कियां साड़ी पहनकर आई है, तुम भी पहन लेती तो कितना अच्छा होता।’’

“हां मुझे साड़ियां पहनने का शौक है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि खुद को संस्कारी साबित करने के लिए मैं साड़ी पहनूं, फंक्शन में कई घंटे बीत जाते है तो इतनी गर्मी में साड़ी में असहज महसूस होता है। मुझे जिसे पसंद करना होगा वो जीन्स या स्कर्ट पहनकर रहूं तब भी कर लेगा, सच्चा प्यार शर्तों में नहीं होता है।’’

रीमा की मां ने कहा तुम्हे जो ठीक लगे वो करो लेकिन बाद में मुझे जिम्मेदार मत ठहराना

हां मां मैं इतनी समझदार हूं कि जो भी मेरे जीवन में होता है उसकी जिम्मेदारी मैं खुद लूं, ना कि किसी और को दोष दूं।’’ रीमा ने कहा।

शिल्पा रोंघे

व्यंग्य-आदर्श महिला बनने की ट्रेनिंग

  नीरज ने सोचा कि शहर की लड़कियों को आदर्श कैसे बनाया जाए, इसकी ट्रेनिंग दी जाए, तो कई लड़कियों की रुचि उसमें जगी। शहर की कई लड़कियों ने...