बुधवार, 21 अप्रैल 2021

जहां चाह वहां राह

 

मानसी को दिल्ली आए हुए 6 महीने ही हुए थे, अभी उसके पति का मुंबई से दिल्ली ट्रांसफर हुआ था, जो कि एक मल्टीनेशनल कंपनी में मैनेजर था। मानसी पूरा दिन घर पर अकेला महसूस करती थी, हालांकी खाना वो खुद ही पकाती थी फिर भी बचे हुए वक्त में क्या करे ? ये उसे समझ में नहीं आता था, ख़ासकर जिस लड़की को टीवी देखना पसंद ना हो। जिस अपार्टमेंट में वो रहती थी उसके सामने वाले फ्लैट में ही दीपशिखा रहती थी जो कि एक अखबार में काम करती थी, उससे उसकी गहरी दोस्ती हो गई थी।

एक दिन दीपशिखा उसे शाम को बाहर अपने दोस्तों के साथ जाते हुए दिखी, तो उसने पूछा कि कहां जा रही हो तुम तो उसने कहा कि “मैं डिस्को जा रही हूं।’’

“मुझे भी साथ लेकर चलना कभी’’ मानसी ने कहा।

“लेकिन तुम्हारे पति से पूछा क्या ?’’ दीपशिखा ने कहा।

वो तो नाइट शिफ्ट कर रहे है तो सुबह आते हैं।’’ मानसी ने जवाब दिया ।  

चलो अगली बार तुम्हें ले जाएंगे उससे पहले हम शॉपिंग पर जाएंगे साड़ी पहनकर जाओगी क्या ?’’

ओके संडे को चलेंगे शॉपिंग पर दीपशिखा ने कहा।

संडे नहीं फ्राईडे को चलेंगे, उनको ज़रुरत से ज्यादा खर्चा पसंद नहीं है मानसी ने जवाब दिया ।  

 ओके बाय कहते हुए दीपशिखा अपने दोस्तों के साथ ऑटो में सवार होकर चली गई।

मानसी 25 साल की थी जब उसकी शादी हुई थी और उसके पति की आयु 30 साल थी।

दीपिशिखा का मायका लातूर में था। तो नए शहर में तालमेल बिठाने में उसे थोड़ी परेशानी हो रही थी।

यहां छोटे शहर की तरह लोगों को आपस में ज्यादा घुलने-मिलने की आदत भी नहीं थी, लेकिन उसकी दीपिशिखा से अच्छी दोस्ती हो गई थी जिससे वो टूटी -फूटी हिंदी में बात कर लेती थी।

आखिर फ्राइडे का दिन आ ही गया और मानसी ने दीपशिखा के साथ ढेर सारी शॉपिंग कर डाली।

ढेर सारे वेस्टर्न कपड़े खरीद डाले।

अब तो जैसे मानसी हर हफ़्ते ही दीपिशिखा के साथ कभी शॉपिंग तो महीने में एकाध बार डिस्को जाने लगी।

एक दिन उसके पति सचिन की रात की शिफ्ट भी खत्म हो गई लेकिन ख़ुश होने के बजाए वो उदास रहने लगा

तो मानसी ने पूछा आप उदास क्यों रहते हो?

तो उसने कहा अगले महीने मेरी नौकरी जाने वाली है, अभी मैंने बैंक अकाउंट चेक किया, बैलेंस काफी कम दिख रहा है हमारे फ्लैट का लोन भी तो चल रहा है इतना खर्चा क्यों बढ़ रहा है क्या वजह है इसकी ?”

इस महीने मैंने थोड़ी शॉपिंग कर ली और दो तीन शादियां भी आने वाली है रिश्तेदारी में, तो गिफ़्ट भी खरीदना पड़े।’’

आप ऐसा करो ना कोई छोटी मोटी जॉब कर लो।’’ मानसी ने कहा।

इतना पढ़-लिखकर ?” सचिन ने कहा।

क्यों ना शुरुआत तुम्ही से हो जाए।’’ सचिन ने फिर कहा।

मुझे कौन रखेगा ? यहां पराए शहर में नौकरी पर ?” मानसी ने कहा।

अगले दिन सुबह सचिन के ऑफिस जाने के बाद मानसी दीपशिखा से मिली।

अरे क्या तुम मुझे कोई जॉब बताओगी ?” मानसी ने कहा।

हां तुमने साहित्य की पढ़ाई की है ना।’’ दीपशिखा ने कहा।

हिंदी या अंग्रेजी कौन सी भाषा जानती हो तुम ?”  दीपशिखा ने कहाजहां चाह वहां राह

मानसी को दिल्ली आए हुए 6 महीने ही हुए थे, अभी उसके पति का मुंबई से दिल्ली ट्रांसफर हुआ था, जो कि एक मल्टीनेशनल कंपनी में मैनेजर था। मानसी पूरा दिन घर पर अकेला महसूस करती थी, हालांकी खाना वो खुद ही पकाती थी फिर भी बचे हुए वक्त में क्या करे ? ये उसे समझ में नहीं आता था, ख़ासकर जिस लड़की को टीवी देखना पसंद ना हो। जिस अपार्टमेंट में वो रहती थी उसके सामने वाले फ्लैट में ही दीपशिखा रहती थी जो कि एक अखबार में काम करती थी, उससे उसकी गहरी दोस्ती हो गई थी।

एक दिन दीपशिखा उसे शाम को बाहर अपने दोस्तों के साथ जाते हुए दिखी, तो उसने पूछा कि कहां जा रही हो तुम तो उसने कहा कि “मैं डिस्को जा रही हूं।’’

“मुझे भी साथ लेकर चलना कभी’’ मानसी ने कहा।

“लेकिन तुम्हारे पति से पूछा क्या ?’’ दीपशिखा ने कहा।

वो तो नाइट शिफ्ट कर रहे है तो सुबह आते हैं।’’ मानसी ने जवाब दिया ।  

चलो अगली बार तुम्हें ले जाएंगे उससे पहले हम शॉपिंग पर जाएंगे साड़ी पहनकर जाओगी क्या ?’’

ओके संडे को चलेंगे शॉपिंग पर दीपशिखा ने कहा।

संडे नहीं फ्राईडे को चलेगें, उनको ज़रुरत से ज्यादा खर्चा पसंद नहीं है मानसी ने जवाब दिया ।  

 “ओके बाय कहते हुए दीपशिखा अपने दोस्तों के साथ ऑटो में सवार होकर चली गई।

मानसी 25 साल की थी जब उसकी शादी हुई थी और उसके पति की आयु 30 साल थी।

दीपिशिखा का मायका लातूर में था। तो नए शहर में तालमेल बिठाने में उसे थोड़ी परेशानी हो रही थी।

यहां छोटे शहर की तरह लोगों को आपस में ज्यादा घुलने मिलने की आदत भी नहीं थी, लेकिन उसकी दीपिशिखा से अच्छी दोस्ती हो गई थी जिससे वो टूटी फूटी हिंदी में बात कर लेती थी।

आखिर फ्राइडे का दिन आ ही गया और मानसी ने दीपशिखा के साथ ढेर सारी शॉपिंग कर डाली।

ढेर सारे वेस्टर्न कपड़े खरीद डाले।

अब तो जैसे मानसी हर हफ़्ते ही दीपिशिखा के साथ कभी शॉपिंग तो महीने में एकाध बार डिस्को जाने लगी।

एक दिन उसके पति सचिन की रात की शिफ्ट भी खत्म हो गई लेकिन ख़ुश होने के बजाए वो उदास रहने लगा

तो मानसी ने पूछा आप उदास क्यों रहते हो?

तो उसने कहा अगले महीने मेरी नौकरी जाने वाली है, अभी मैंने बैंक अकाउंट चेक किया बैलेंस काफी कम दिख रहा है हमारे फ्लैट का लोन भी तो चल रहा है इतना खर्चा क्यों बढ़ रहा है क्या वजह है इसकी ?”

इस महीने मैंने थोड़ी शॉपिंग कर ली और दो तीन शादियां भी आने वाली है रिश्तेदारी में, तो गिफ़्ट भी खरीदना पड़े।’’

आप ऐसा करो ना कोई छोटी मोटी जॉब कर लो।’’ मानसी ने कहा।

इतना पढ़ लिखकर ?” सचिन ने कहा।

क्यों ना शुरुआत तुम्ही से हो जाए।’’ सचिन ने फिर कहा।

मुझे कौन रखेगा ? यहां पराए शहर में नौकरी पर ?” मानसी ने कहा।

अगले दिन सुबह सचिन के ऑफिस जाने के बाद मानसी दीपशिखा से मिली।

अरे क्या तुम मुझे कोई जॉब बताओगी ?” मानसी ने कहा।

हां तुमने साहित्य की पढ़ाई की है ना।’’ दीपशिखा ने कहा।

हिंदी या अंग्रेजी कौन सी भाषा जानती हो तुम ?”  दीपशिखा ने कहा

सिर्फ मराठी मानसी ने कहा ।

ओह तो यहां काम मिलना थोड़ा मुश्किल ही हैदीपशिखा ने कहा।

“फिर भी मैं कोशिश करुंगी, मेरे अखबार की एच आर मैनेजर है अश्विनी देशमुख तो मैं उनसे तुम्हारें बारे में बात करुंगी।’’ दीपशिखा ने कहा।

एक दिन अश्विनी का मानसी को कॉल आया।

“यहां मेरी दोस्त का एक मराठी अखबार है जिसका प्रसार बहुत ही कम है यहां तो उनकी आमदनी भी नहीं है, तो सैलरी थोड़ी कम होगी तो काम करना चाहोगी क्या ?”

मानसी ने सोचा शुरुआत तो कर ली जाए अगर मायके में बताया तो कहेंगे कि सरकारी नौकरी वाले से शादी की होती तो ये दिन देखने को ना मिलते, बड़े शहर में शादी की क्या ज़रुरत थी, अपने शहर में क्या लड़के कम है, वगैरह-वगैरह, अब कई रिश्ते आए थे उसके लिए जो उसके शहर के ही थे लेकिन उसने सचिन को ही चुना, घर के लोगों ने सोचा दूर के शहर का पसंद है तो वही सही।

एक दिन दीपशिखा ने सुबह उठते ही अपना नया ऑफिस ज्वाइन कर लिया।

उसे जॉब करते-करते 6 महीने हो गए थे, उसके पति की भी नौकरी कहीं और लग गई।

एक दिन उसके पति ने कहा कि वो अब नौकरी छोड़ सकती है और सिर्फ घर संभाले क्योंकि उसे भी घर के काम में हाथ बटाना पड़ रहा था।

तभी उसने कहां “नहीं अब मुझे अपनी मंजिल मिल चुकी है वो कोई कठपुतली नहीं है कि जब चाहे नौकरी करे और छोड़ दे।’’

उसकी जिद के आगे सचिन को भी झुकना पड़ा।

सच तो है एक औरत के लिए दुनिया में अपना स्थान बनाना आसान काम नहीं होता लेकिन कहते है कि जहां चाह वहां राह  मिल ही जाती है मुश्किल से ही सही।

शिल्पा रोंघे

 नोट- यह कथा पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति व्यक्ति, घटना या स्थान से कोई संबध नहीं है। सर्वाधिकार सुरक्षित

 

 

 

 

 

 

         


गुरुवार, 15 अप्रैल 2021

असली मर्द

 

सीमा और मनोज एक ही गांव में पले-बढ़े थे। आज पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर मनोज अपने दोस्त संग पंजा लड़ा रहा था। तभी सीमा अपनी सहेली संग वहां आ पहुंची, बगल वाले पेड़ से बेर तोड़ने, एक-एक करके उसने बेर अपने दुप्पटे में लपेट कर बांध लिए।

तभी पड़ोस की चंदा काकी भी आ पहुंची और बोली  “अरे इतनी तपती धूप में कहां घूम रही हो तुम दोनों, जाओ घर जाकर चुल्हा चौका संभालों वहीं शोभा देता है तुम लोगों को, ये आवारागर्दी तो लड़कों का काम हैं।’’

“क्या आप भी, थोड़ा घूम फिर लिए तो कौन सा गुनाह कर लिए? ’’ सीमा ने जवाब दिया।

“अरे शादी -ब्याह कर लो, कौन सा आजकल के मर्द मारते -पीटते है, पढ़ लिखकर बहुत आगे जो बढ़ गई हो तुम लोग। हमारे जमाने में तो 16 साल पूरे होते ही हाथ पीले हो जाते थे, ना हां बोलने की हक था ना मना करने का, खैर छोड़ों तुम लोगों को समझाना बेकार है।’’ ये कहते हुए काकी वहां से निकल गई।

 

हैरान -परेशान सीमा ने अपनी सहेली सुधा से कहा “अरे पता नहीं क्यों ये काकी हम पर सारी नाराजगी निकाल गई।’’

अरे काका ने कुछ कह दिया होगा, तो हम पर भड़ास निकालकर मन हल्का कर रहीं है और क्या, चल छोड़, देख वो मनोज अपने दोस्त के साथ पंजा लड़ा रहा है क्या तू उसे हरा सकती है ? सुधा ने पूछा।

                                                               

“क्यों नहीं सीमा ने कहा।

कहीं तेरी पतली कलाई में मोच ना आ जाए, ये देख लेना। सुधा ने उसे चेताया।

मनोज मानवाधिकार में पोस्ट ग्रेजुएशन कर रहा था, गर्मियों की छुट्टियों में गांव आया था।

तभी सीमा को देखकर बोला कैसी हो तुम ?”

अच्छी हूं क्या तुम मुझसे पंजा लड़ाओगे ?’’ सीमा ने कहा।

हां बिल्कुल क्यों नहीं।’’ मनोज ने जवाब दिया।

जैसे ही सीमा मनोज से पंजा लड़ाने बैठी तो मनोज का हाथ उसके हाथ पर भारी पड़ने लगा, उसे लगा उसका हारना तो तय ही है तभी मनोज ने अपना हाथ थोड़ा ढीला छोड़ दिया। बाजी पलट गई और सीमा जीत गई । तभी सीमा ने खुशी से कहा कि मैं जीत गई।”  

सुधा ने कहा “अरे वाह तुने तो कमाल ही कर दिया।”  

तभी सीमा का छोटा भाई वहां आ पहुंचा बोला “दीदी घर चलो, अम्मा बुला रही है।”

तभी सीमा अपने दुप्पटें में बंधे बैर को संभालते हुए घर की ओर चल दी।

मनोज के दोस्त सतीश ने कहा “अरे तू क्यों जान बुझकर हार गया।’’

मनोज ने कहा “असली मर्द वो थोड़े ही होता है जो हर बार जीते, कभी औरत पर हाथ उठाकर, हर आती-जाती महिला को गलत ढंग से घूरकर या उनके अधिकारों का दमन कर खुद को बड़ा साबित करे। अरे अगर मेरे हारने से एक औरत को ख़ुशी मिली है तो वही सही। पढ़े लिखे लोगों की कोई कमी नहीं हमारे देश में, लेकिन असली तालीम तो बिना औरत की बराबरी की बात कहे, अधूरी ही है।’’

सतीश ने कहा “मान गए, बात में दम तो है तुम्हारी काश ये हर कोई समझता तो कितना अच्छा होता।’’

शिल्पा रोंघे   


नोट- यह कथा पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति व्यक्ति, घटना या स्थान से कोई संबध नहीं है। सर्वाधिकार सुरक्षित

शनिवार, 3 अप्रैल 2021

प्यार की अमर कहानी

 


आज अदिती बेहद उदास थी तो सुमित ने उससे पूछा क्या बात है तुम्हारा मिज़ाज आज बदला-बदला सा क्यों है ?”

मैंने एक प्रेम कहानी पढ़ ली जिसमें नायिका नायक के चक्कर में अपनी जान से हाथ धो बैठती हैं। अदिती ने कहा।

तो नहीं पढ़नी चाहिए थी। सुमित ने कहा।

बहुत मशहूर थी और बेस्टसेलर भी, तो रहा नहीं गया। मेरे मन में उसे पढ़ने की रुचि इस कदर जगी  कि पढ़ने से खुद को रोक ही नहीं सकी। मुझे ये समझ नहीं आता कि ये सभी मशहूर कहानियां दुखांत क्यों होती है अक्सर, लैला मजनू् हो या फिर हीर रांझा बताओं ना।

तुम्हारी और मेरी प्रेमकहानी भी तो असंभव ही थी, कितनी पीढ़ियों की दुश्मनी थी हमारे परिवार के बीच।

दअरसल सुमित के दादा ने ही अदिती के दादा के खिलाफ केस लड़ा था,  सुमित के दादा शहर के मशहूर वकील थे उन्होंने तो बस किसी और की तरफ से केस लड़ा था लेकिन फिर  भी उन्होंने अंजाने में बुराई मोल ली। कुछ जायदाद वाला मामला था तो दोनों परिवारों में आपस में बात बंद हो गई थी, लेकिन सुमित और अदिती की शादी के बाद समीकरण बदल गया जो परिवार एक दूसरे का चेहरा भी देखना पसंद नहीं करते थे उनमें फिर से मित्रता हो गई। हालांकि काफी ना-नुकूर और विवाद हुआ था उस दौरान, लेकिन फिर भी ना जाने कैसा चमत्कार हुआ की धीरे-धीरे सब ठीक हो गया।

अदिती ने सुमित से कहा हां सही कह रहे हो तुम लेकिन हम तो ठहरे दो मामूली से इंसान कहां ये मशहूर कहानियां और कहां हम। हमारी कहानी भी किसी कथा से कम नहीं लेकिन किसे दिलचस्पी है इसके बारे में जानने में।

दअरसल लोग प्यार का अर्थ ही नहीं समझते है तुम मेरे लिए सारी दुनिया से लड़ गई फिर भी नासमझ ही हो। सुमित ने कहा।

वो कैसे अदिती ने कहा।

अरे पाना ही प्यार थोड़े ही है, किसी की खुशी के लिए अपनी खुशी कुर्बान करना भी प्यार है, कभी कभी

त्याग में ही प्रेम छिपा होता है।

दुनिया में दो लोगों के धरती पर मिलन को ही प्यार समझा जाता है लेकिन आत्मिक मिलन को भी प्यार कहा जाता है जो हमेशा के लिए अमर हो जाता है मिलना और बिछड़ना तो नसीब की बात है। ऐसे ही नहीं लोग राधा और कृष्ण के प्रेम की मिसाल देते हैं।

ये लो तुम्हारे लिए किताब और ये एक दुखांत नहीं सुखांत है, कहानी है वो भी बेस्टसेलर किताब।

ओह धन्यवाद कहते हुए अदिती के चेहरे पर वो मुस्कान आ गई जो लंबे वक्त से उड़ी हुई थी।


© सर्वाधिकार सुरक्षित, कहानी के सभी पात्र काल्पनिक है जिसका जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। 

 

शिल्पा रोंघे

व्यंग्य-आदर्श महिला बनने की ट्रेनिंग

  नीरज ने सोचा कि शहर की लड़कियों को आदर्श कैसे बनाया जाए, इसकी ट्रेनिंग दी जाए, तो कई लड़कियों की रुचि उसमें जगी। शहर की कई लड़कियों ने...