मंगलवार, 22 जून 2021

सहमति

 


 


दिशा की उम्र तीस साल हो चुकी थी, पीएचडी करते-करते इतनी उम्र होना तो स्वाभाविक ही था, आज उसके घर के लोग बहुत खुश थे क्योंकि उनके घर शहनाई बज रही थी। जल्दी ही वो दिन आ गया कि उसकी विदाई हो गई, उसका पति सुमित उससे उम्र में दो साल बड़ा था। वो ये कल्पना करके बहुत ख़ुश था कि चलो उसकी प्रेयसी जो कि कॉलेज के दिनों में उसकी  प्रिय हुआ करती थी, की तरह वो अति सुंदर तो नहीं थी पर आकर्षक ज़रुर थी, लेकिन ये क्या वो तो उससे दूर-दूर ही रहने लगी।

एक दिन सुमित को चुपचाप देखकर उसकी मां ने पूछा तुम इतना कम क्यों बोलने लगे हो ?

तभी सुमित ने बताया कि वो मेरे रुप की भी कद्र नहीं करती है, पता नहीं क्या खोट दिखता है उसे मुझमें।

आप लोगों ने मुझ पर शादी का ज़ोर डाला वरना मैं तो दो-चार साल रुकना चाहता था।

मुझे लगता है शायद ये रिश्ता लंबा नहीं चलेगा।


उसकी माँ ने कहा “रुको बेटा हो सकता है कि छोटे शहर में रहने की वजह से उसकी सोच ऐसी हो गई हो, हम बचपन से ही लड़कियों को ये सिखाते है कि हद में रहे और लड़कों से ज्यादा घुले मिले ना, ऐसे में इस तरह का व्यवहार स्वाभाविक है।

“मां एक दिन वो जिद पर अड़ गई और कहने लगी कि मुझे अपनी प्रेमिका की तरह डेट पर ले चलो, मैं पहले तुम्हारे प्रेम में पड़ना चाहूंगी फिर तुम्हारे नजदीक आउंगी। ये क्या बचपना है, मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगा उसका बर्ताव।

“सही तो कह रही है, यदि तुम उससे प्रेम करते हो तो तुम्हे धैर्य भी रखना होगा, वो नए वक्त की लड़की है जिसके लिए सहमति मायने रखती है, अगर तुम्हारे लिए नहीं रखती तो तुम्हारी पढ़ाई लिखाई का क्या अर्थ है? पितृसत्तामक समाज में सदियों से औरत की आवाज और इच्छा का कोई महत्व नहीं रहा है, जो कि होना चाहिए।”

“ क्या तुम्हे अब भी लगता है कि उसकी सहमति वाली बात गलत है ?”

 

“हां तुम्हारी बात में दम तो है मां, वो प्यार ही क्या जिसमें सहमति ही ना हो, सिर्फ पुरुष की ही इच्छा ध्यान रखा जाता हो।’’

शिल्पा रोंघे

© सर्वाधिकार सुरक्षित, कहानी के सभी पात्र काल्पनिक है जिसका जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। 


बुधवार, 9 जून 2021

किताब का हक


 

मनीषा का ब्याह स्कूल पास होते ही हो गया था, वो पढ़ने में बहुत तेज थी, लेकिन उसकी सुनता कौन? 12 वीं पास होते ही उसके हाथ पीले कर दिये गए, वजह थी कि उसके गांव में कोई कॉलेज नहीं था, उसकी सभी दूर की बहनें शहर में रहती थी, तो उससे ज्यादा पढ़-लिख गई। अब उसकी उम्र 32 साल हो चुकी थी। बच्चें भी बड़े हो चुके थे।

खेती-बाड़ी वाले ससुराल में होने की वजह से वो संयुक्त परिवार में रहती थी, एक दिन उसकी भांजी रिया का बारहवी का रिजल्ट आया तो वो बहुत खुश थी कि अब वो शहर जाकर आगे की पढ़ाई करेगी।

तभी मनीषा ने उसे बधाई दी और कहा कि चलो तुम अब घर का नाम रोशन करोगी, जो मैं नहीं कर पाई वो अब तुम कर पाओगी।’’

रिया ने कहा आप अभी भी बहुत कुछ कर सकती हो, देर नहीं हुई है।’’

मनीषा ने कहा अब मुझे घर-गृहस्थी से फ़ुरसत मिले तब तो

आप भी मेरे साथ चलो, आगे की पढ़ाई पूरी करने के लिए। रिया ने कहा।

अरे नहीं अब ये संभव नहीं है।’’ मनीषा ने उत्तर दिया।

तभी मनीषा के पति का वहां आना हुआ क्या संभव नहीं है ?”

देखो जिद पर बैठी है रिया कि मुझे भी आगे की पढ़ाई करना चाहिए। शहर चलने को कह रही है कैसे होगा।’’

सही तो कह रही है तुम्हारे जैसी प्रतिभा तो मुझ में भी नहीं है, ये तो मैं भी कहना चाहता था, मुझे लगा कि शायद तुम्हे अच्छा ना लगे।’’

बच्चों की चिंता मत करो मैं उन्हें संभाल लूंगा, आखिर वो मेरे भी तो बच्चे है।

"बस तुम्हें हिम्मत जुटानी पड़ेगी और आगे की सफ़र तय करना होगा।"

तभी मनीषा ने कहा हां सही तो है पढ़ने-लिखने की तय उम्र थोड़े ही ना होती है वो तो कभी की जा सकती है। बस हौंसला होना चाहिए।’’

शिल्पा रोंघे

 

व्यंग्य-आदर्श महिला बनने की ट्रेनिंग

  नीरज ने सोचा कि शहर की लड़कियों को आदर्श कैसे बनाया जाए, इसकी ट्रेनिंग दी जाए, तो कई लड़कियों की रुचि उसमें जगी। शहर की कई लड़कियों ने...