गुरुवार, 14 मई 2020

वफ़ा की सज़ा

चंद्रपुर नाम के गांव में बिना किसी गुनाह के सभी पंचो के आगे सर झुकाकर खड़ी रही विनिता और उसे फ़रमान सुना दिया गया कि उसे अपने माता-पिता के घर वापस भेज जाए, उसी दोपहर उसका पति उसे अपनी कार में बिठाकर उसके मायके की तरफ़ निकल पड़ा। दोनों के बीच एक अजीब सी ख़ामोशी पसरी हुई है, तभी कार की खिड़की से खेतों की तरफ देख रही विनिता को सभी हरे हरे खेत और पेड़ दौड़ते हुए से मालूम हो रहे थे, अचानक ही वो सोच में पड़ गई कि उसे ये कैसा दिन देखना पड़ा और कुछ ही दिनों पहले हुआ बवाल उसकी आंखों के आगे दौड़ पड़ा जब वो खेत के पास लगे आम के पेड़ पर से आम तोड़ने जाया करती थी, एक दिन उसने देखा वहां हेमंत टहल रहा था। हेमंत पास के ही शहर के कॉलेज से ही एमटेक कर रहा था, थोड़ा रसिक मिज़ाज का गोरा चिट्टा 23 साल का नौजवान था, जिसके नैन नक्श कुछ ख़ास नहीं थे फिर भी ठीक ठाक लगता था। एक दिन उसने विनिता को देखा तो देखता ही रह गया।

विनिता मध्यम कद काठी की गौर वर्ण वाली ख़ुबसूरत 20 साल की नवयौवना थी जिसके काले काले बालों से बनी चोटी उसकी कमर से नीचे तक लहराती थी। उसके पति का नाम बंसत था जो कि सांवले रंग का छह फीट का आदमी था जो मनोहर चेहरे वाला था, उसके कुछ बाल सफेद हो रखे थे, जो जीवन में उतार चढ़ाव उसने देखे थे उसकी गवाही दे रहे थे।

विनिता को अकेले देखकर बंसत ने कहा क्यों री  अभी ब्याह को 1 साल भी पूरा नहीं हुआ और तू बेधड़क पूरे गांव भर घूमती है ?”

विनिता ने कहा नवविवाहिता हूं कोई कैदी नहीं, जब तू यहां बेमतलब टहल सकता है तो क्या मैं अपने ही पेड़ों पर लगे आम नहीं तोड़ सकती हूं क्या ?”

बंसत ने कहा अरे भाई क्यों गुस्से से लाल हो रही है तू, वैसे भी उस अधेड़ से भी उब जाती होगी तो यहां आकर मन हल्का कर लिया कर

“कौन अधेड़”? विनिता ने कहा

तेरा पतिहेमंत ने कहा

वो सिर्फ 35 बरस के हैं विनिता ने कहा

हेमंत ने कहा  अरे तुझसे 15 साल बड़ा आदमी अधेड़ ही तो हुआ

तुमसे बहस करना ही बेकार है ये कहकर विनिता अपने घर चली गई, और चूल्हा चौका में लग गई।

रात होने को आई उसके पति का शहर में व्यापार था तो कभी आने में 10 तो कभी 12 बज जाते थे।

बात करने को भी दिन भर उसकी सास ही थी जिसे उसका किसी से ज्यादा मिलना जुलना पसंद नहीं था, घर में वो उसके काम में हाथ भी बंटा देती लेकिन उसे शक रहता कि कहीं उसकी बहू के कोई कान ना भर दे।

विनिता की कुल 2 बहने और एक भाई था वो अपनी बहनों में सबसे बड़ी थी, जब उसके लिए बसंत का रिश्ता आया तो वो 12 वीं पढ़ रही थी, पूरे स्कूल की टॉपर थी, वो इंजिनियर बनने का सपना देख रही थी, तब बसंत का रिश्ता आ गया तो उसने कहा कि अभी वो काफी छोटी है बसंत को उसके उम्र की लड़की मिल जाएगी लेकिन उसकी पढ़ाई लिखाई का क्या होगा

उसकी मां ने समझाया “ बेटा वो गणित में एमएसी तक पढ़े है बहुत बड़ा व्यापार है उनका शहर में और गांव में खेत खलिहान। अच्छे –अच्छे घर के रिश्तें आते है उनके लिए वो तो उनके पिता की मौत के बाद सारी जिम्मेदारी आ गई थी उनके कंधों पर, इसलिए शादी नहीं की और आगे भी करने का इरादा नहीं था, लेकिन तुम्हारी तस्वीर देखकर शादी की इच्छा दिखाई है, तुम इसे टालो मत तुम्हारी दो छोटी बहने और एक भाई भी तो है, पहले ही तुम्हारे पिता पर कर्जा चढ़ा हुआ है ये पढ़ाई लिखाई और राजकुमार वाले सपने हमारे जैसे लोगों के लिए नहीं है

आखिरकार विनता को झुकना ही पड़ा।

उस दिन खेत में हुई बहस के बाद विनिता फिर आम तोड़ने खेत जा पहुंची तब देखा हेमंत वहां खड़ा था,

बोला तू फिर आ गई यहां वैसे हवा काफी सुहानी चल रही है

हां वो तो है तुम फिर आज यहांविनिता बोली।

मैं तो रोज ही आता हूंहेमंत ने कहा।

तू भी आएगी ये पता था, पति घर पर रहता नहीं सास किसी से मिलने देती नहीं, सुन मैं तुझे एक बात कहना चाहता हूं जो मैनें इस खत में लिखी है चुपचाप इस पढ़ लेना अगर ठीक लगे तो मुझे बताना

मुझे नहीं पढ़ना कोई खत वत विनिता ने कहा।

 हेमंत ने कहा प्लीज तुझे तेरी मां की कसम पढ़ लेना एक बार ना पसंद आए तो जलाकर फेंक देना

विनिता ने खत पढ़ाना शुरु किया

मेरी प्रिय विनिता

जब से मैंने तुम्हें देखा है दिन में बेचैनी, रात में नींद है कम।सुना है तेरा पढ़ने लिखने में खूब मन लगता है मेरी भी कॉलेज की छुट्टी खत्म होने वाली है आगे कि पढ़ाई तुम शहर में मेरे साथ कर लेना मैं तुम्हारा दाखिला कहीं करवा दूंगा, उस बसंत के साथ तेरा कुछ नहीं होने वाला है। मैंने अपना फ़ोन नंबर भी लिख दिया है बात सही लगे तो मुझे बता देना, तू कहां गायब हुई है किसी को पता भी नहीं चलेगा मैं पूरा मामला रफ़ा दफ़ा करवा दूंगा

हेमंत राजनैतिक परिवार से तालुल्क रखता था डर क्या चीज़ है उसे पता नहीं थी हर लड़की को अपनी पुश्तैनी जायजाद समझता था।

विनिता पर सनक सवार हो चुकी थी उसने कहा खबरदार अगर आगे से मुझे कोई ख़त वत लिखा तो मैं इसे थाने में सौंप दूंगी। आखिरी चेतावनी दे रही हूं

हेमंत थोड़ा घबरा गया और खत लेने के लिए विनिता के तरफ लपका लेकिन विनिता दौड़ती हुई खेत से बाहर आ गई और चुपचाप घर पर आकर उसने वो खत अपने कपड़ों की अलमारी में रख दिया।

फिर वो 10 दिन तक उस खेत में नहीं गई फिर अपनी सास को साथ लेकर वहां जाना शुरु किया हेमंत एक भी दिन वहां नज़र नहीं आया। पता चला कि वो शहर वापस जा चुका है।

एक दिन उसकी सास ने इत्र की बोतल उठाने के लिए अलमारी में खोली तो एक सुनहरे रंग के लिफ़ाफे पर उसकी नज़र पड़ी जो कि विनिता की घड़ी की हुई साड़ी के नीचे से मिला। तो सोचा कि इसे देखे, जब उसने वो खत पढ़ा तो वो हक्की बक्की रह गई।

फिर क्या था विनिता को सफाई का मौका दिए बगैर वो उससे झगड़ा करने लगी विनिता ने उसे समझाने की कोशिश भी की, कि सिर्फ सबूत के तौर पर उसने ये ख़त रखा था। इसी बीच उसका पति भी आज जल्दी घर आ गया वो भी विनिता को मारने दौड़ा तो वो घबराकर घर से बाहर निकल कर पड़ोसी के यहां पहुंच गई देखते ही देखते बात सारे गांव तक पहुंची, बसंत को लगा कि वो शायद कुछ ज्यादा ही गुस्सा कर गया लेकिन बहुत देर हो चुकी थी।

लोगों को लगा कि विनिता गांव का माहौल खराब कर रही है और उसकी देखा देखी और भी लड़कियां बगावत कर बैठेंगी।

सभी पंचो ने ये फ़ैसला लिया कि हेंमत को शहर से बुलाया जाए लेकिन उसके कानों तक भी ख़बर पहुंच गई और उसने फोन स्वीच ऑफ कर लिया। विनिता ने बहुत सफाई देने की कोशिश की लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ।

अचानक से गाड़ी में लगे झटके से विनिता ख़्यालों की दुनिया से बाहर आ गई उसका घर आ चुका था, उसके पति ने उसका बैग थमाकर उसे अपने घर वापस जाने को कहा और बिना कुछ कहे उसकी चौखट से ही लौट गया सुबह से शाम हो चुकी थी सफर में सिसकती हुई विनिता ने पूरा किस्सा अपने माता पिता को सुनाया।

तो उन्होंने कहा कि वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा।

विनिता ने सोचा एक आदमी(हेमंत) की लंपट आदतों और एक आदमी की हीनभावना (बंसत) के बीच फंसकर उसकी कितनी पिसाई हो गई, उसने फ़ैसला कर लिया कि वो अब अपने ससुराल कभी वापस नहीं जाएगी, और आगे की पढ़ाई के बारे में सोचेगी।

तभी कुछ दिनों में बसंत उसके घर वापस आ गया, अपनी गलती मानते हुए उसने बताया कि कैसे हेमंत ने पंचो को अपने प्रभाव और प्रलोभन का झांसा देकर पूरे मामले से अपना पत्ता काट लिया और विनिता को फंसा दिया।

विनिता के माता पिता ने उसके पति के साथ वापस उसे घर भेज दिया तभी विनिता को सब के सामने हुई अपनी बेइज्जती याद आने लगी और बसंत की अस्वीकार्य चुप्पी भी।

उसके मन में ख्याल आया कि अविश्वास से टूटे रिश्तों के धागे फिर जुड़ तो सकते है लेकिन रिश्तों में पड़ी गांठ मिट सकती है क्या ?

रिश्तों से जो उसके मन का भरोसा उठा है वो फिर से वापस आ सकता है क्या ?

वफ़ा की जो सज़ा उसे मिली है उसे भूल पाना इतना आसान है क्या ?

शिल्पा रोंघे

 

  © सर्वाधिकार सुरक्षित, कहानी के सभी पात्र काल्पनिक है जिसका जीवित या मृत व्यक्ति

से कोई संबंध नहीं है।

 

 


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