रविवार, 28 जून 2020

जंगल सुंदरी





ये कौन ? फिरंगी ! हाय राम... जिन्होंने हमारे देश को गुलाम बनाया था। सतीश की 80 साली दादी बोली

सतीश अरे अंग्रेजों को भारत छोड़े हुए कई साल बीत चुके है वो तो बस घुमने फिरने आते है हमारे देश में, जैसे कि हम उनके देशों की सैर करने जाते हैं." 

ये हमारे गांव में क्या कर रहा है ?  "कुछ सलाह लेनी थी इसे आसपास के जंगल के बारे में। ये वाइल्ड लाइफ़ फोटोग्राफर है। हमारे जिले के कलेक्टर साहब ने इसे हमारा पता दिया कि मैं इसे जंगल का रास्ता बता सकूं।"

सतीश गांव का सरपंच था तो पीटर उसके पास ही पहुंच गया, पीटर एंग्लो इंडियन है जिसके पूर्वजों का भारत से नाता था लेकिन उसके दादा दादी स्वतंत्रता के बाद लंदन शिफ्ट हो गए थे। उसके माता पिता का भी भारत आना ना हो सका।

पीटर ने टूटी फूटी हिंदी में कहा नमस्टे.”

फिर सतीश भी अपनी टूटी फूटी अंग्रेजी में उसे गांव के जंगल के बारे में समझाने लगा।

तभी सतीश की पत्नी जो किचन में खड़े होकर सब सुन रही थी ने अपने10 साल के बच्चे से कहा, “देख कितनी अच्छी अंग्रेजी बोलते है पीटर, तुम भी रेडियो सुनकर प्रैक्टिस किया करो.”

अरे मां वो उनकी मातृभाषा है तो बोलेंगे ही ना अच्छे से.”  बच्चे ने कहा।

तभी सतीश ने पीटर से कहा कि वो खाना खाकर चलेंगे।

तब पीटर ने कहा कि वो अपने पास रखे बिस्किट खाकर ही काम चला लेगा लेकिन सतीश के आग्रह को वो टाल ना सका और  मैथी की सब्जी दाल और रोटी पापड़ का आनंद लिया।

कुछ देर बाद पीटर की गाड़ी में सवार होकर सतीश जंगल की तरफ निकल पड़ा। सतीश ने ही उसे जंगल की तरफ जाने वाले रास्ते के बारे में बताया। उबड़- खाबड़ रास्ते से हिचकोले खाते हुए उनकी गाड़ी आखिरकार जंगल पहुंच गई।

मोर, बंदर, झरने हरे- भरे वृक्ष क्या नहीं था नज़ारे की ख़ूबसूरती बढ़ाने के लिए। दोनों गाड़ी से उतरे सतीश ने पीटर को चेताया कि कदम ज़रा संभालकर रखे, रास्ते में कभी कभार जहरीले सांप भी होते है।

पीटर ने अपना कैमरा निकाला और जंगल के प्राकृतिक सौंदर्य को अपने कैमरे में कैद करने लगा।

तभी उसकी नज़र लकड़ी बीनने आई वनवासी कन्या पर पड़ी। सिर पर कसकर बंधा हुआ काले घने बालों का जूड़ा पीले- भूरे रंग की घुटनों तक लिपटी साड़ी, बड़ा सा माथा, छोटी सी नाक, विशाल नयन और गहरा सवाला रंग हल्का सा दबा चेहरा काफी मनोहर जान पड़ रहा था। आकर्षक काया ऐसी कि स्वंय देवता ने काफी समय देकर मूर्ति की तरह गढ़ी हो।

पीटर ने उसकी भी तस्वीर लेना चाही तो वो जंगली झाड़ की ओट के पीछे घबराकर छिप गई क्योंकि ये मानव उसे किसी और दुनिया से आया लगा। नीली आंखे, भूरे बाल और इतना ज्यादा गोरा रंग जो कि किसी श्वेतवर्ण वाले भारतीय में भी देखने को नहीं मिलता है।

वो ना तो सतीश की भाषा जानती थी और ना पीटर की अंग्रेजी समझ सकती थी। उसकी तो अपनी ही बोली थी जो कि जंगल के निवासियों में प्रचलित होती है, लेकिन सतीश उसकी बोली को टूटे फूटे लहजे में बोल भी सकता था और समझ भी सकता था। पीटर की मंशा वो जान चुका था तो उसने वनकन्या को समझाया कि वो सिर्फ उसकी तस्वीर लेना चाहता है जो कि भारत में प्रकाशित नहीं होगी तो उसकी निजता बनी रहेगी जंगल में कहां ये पत्र पत्रिकाएं बिकती है वहां के निवासी तो मूलभूत सुविधाओं से भी वंचित है जहां शायद ही किसी का ध्यान गया हो।

सतीश ने कहा कि उसे इन तस्वीरों के बदले कुछ डॉलर मिलेंगे, अब डॉलर भी समझ पाना उसके लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा था तो पीटर ने सतीश को कहा कि वो डॉलर के बदले उसे कुछ रुपए दे दे तो बात बन जाए।

तो इस तरह 3000 हज़ार रुपए में सौदा तय हुआ। पीटर ने झाड़ और झरने के पास उसके कई फोटो खींच लिए। कहीं ह्ल्की मुस्कान तो कहीं संकोच वनकन्या के चेहरे पर साफ नज़र आ रहा था।

अपनी बोली में उसने सतीश को कहा कि अब शाम होने आ रही है तो खूंखार जानवरों से खतरा हो सकता है तो वो अपनी बस्ती की तरफ जाना चाहती है और उन्हें भी वहां से चले जाने की सलाह दे डाली।

पीटर और सतीश अपनी गाड़ी में बैठकर गांव की तरफ निकल पड़े। कुछ और शहरों की यात्रा करने के बाद पीटर लंदन वापस चला गया वो एक मैग्जीन के लिए बतौर ट्रेनी फोटोग्राफर की तरह नियुक्त था उसकी भारतीय वनों की चुनिंदा तस्वीरें मैग्जीन में छपी लेकिन सबसे ज्यादा वाहवाही और प्रसिद्धी उसे वनसुंदरी की तस्वीरों के लिए मिली, उसे भी नहीं पता था कि उसकी किस्मत इतने जल्दी चमक जाएगी उस मैग्जीन में उसकी  सैलरी तीन गुनी बढ़ गई और जगह भी पक्की हो गई। तो वहीं वन सुंदरी भी मामूली सी रकम पाकर फूली नहीं समा रही थी और अपनी टूटी फूटी झोपड़ी की मरम्मत में जुट गई जो अक्सर बारिश के पानी से तबाह हो जाती थी। जिसके बाद बचे खुचे पैसों से अपने परिवार के लिए नए कपड़े खरीदने के लिए ख़्बाव बुनते बुनते मन ही मन मुस्कुराने लगी।

शिल्पा रोंघे

 

 © सर्वाधिकार सुरक्षित, कहानी के सभी पात्र काल्पनिक है जिसका जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है।

 

 

 

 

 


गुरुवार, 18 जून 2020

ऑनलाइन लव – प्यार या धोखा ?


अचानक विजय के पास स्मृति का फोन आया कहने लगी मुझे तुम एयरपोर्ट तक छोड़ दो ना।

तब विजय चौंककर बोला आज अचानक मुझे क्यों कॉल कर रही हो क्या तुम्हारे माता पिता नहीं छोड़ सकते है तुम्हें ?”

तभी स्मृति ने कहा तुम मेरे दोस्त हो ना? तो बहस मत करो मुझसे.”

स्मृति उसे अपने कॉलोनी के गार्डन के पास मिली तभी विजय की बाईक वहां रुकी उसने पूछा कहां जा रही हो?”

21 साल की स्मृति बीकॉम तृतीय वर्ष की छात्रा थी।

विजय ने कहा मुंबई में क्या काम पड़ गया तुम्हें ?”

नौकरी लगी है.” स्मृति ने जवाब दिया।

इतने जल्दी अभी तो तुम्हारा थर्ड ईयर भी कम्पलीट नहीं हुआ है.” विजय ने कहा.

अपने हाथ में मध्यम आकार का नीला बैग रखे हुए स्मृति की भाव भंगिमाएं थोड़ी बदल गई।

सच बताओं माजरा क्या है ?” विजय ने कहा।

अरे देर हो जाएगी

चलो तो सही.” कहकर स्मृति उसकी बाईक पर सवार हो गई.

आधे घंटे बाद एयरपोर्ट आ गया।

अभी फ्लाइट में दो घंटे की देरी थी।

तभी विजय को शक हुआ मैं तुम्हें यहां छोड़ने आया हूं तो मेरी ये जिम्मेदारी बनती है सच जानने की बताओ मुझे वरना तुम्हारे माता- पिता को कॉल कर दूंगा.”

पता नहीं तुमने उन्हें बताया की नहीं.”

स्मृति के माता और पिता नौकरी करते थे इसलिए उसे घर से जाते हुए कोई नहीं देख पाया। अपना एकाकीपन मिटाने के लिए उसने डेटिंग एप्स डाउलोड कर ली। जहां उसकी 27 साल के युवक रतन से दोस्ती हो गई, रतन देखने में काफी खूबसूरत था और उसकी खुद की एक एडवरटाइजिंग एजेंसी है और वो एमबीए का टॉपर है, ऐसा उसने स्मृति को बताया था।

ये बात स्मृति ने विजय को बता दी कि वो उससे ही मिलने जा रही है।

ओह दिखाना ज़रा कौन है ये लड़का, अरे ये तो मेरे बड़े भाई की क्लॉस में पढ़ता था अपने ही शहर का है, ये तो 12 वी फेल है, हां ये काफी रईस घर का है लेकिन कई लड़कियों को अपने प्रेमजाल में फंसा चुका है जब तक पिता पैसे भेजते रहे इसकी मौज होती रही एक दिन उन्हें इसकी करतूतों के बारे में पता चला तो उन्होंने उससे नाता तोड़ लिया। वो अपने काम को लेकर बिल्कुल सीरियस नहीं है मुश्किल से उसका खर्चा चलता है और उल्टे उसने कई जगह उधारी कर रखी है, लेकिन उसकी मीठी मीठी बातों और खूबसूरती के जाल में फंसकर कई अच्छा खासा कमाने वाली लड़कियां भी अपना पैसा गंवा चुकी है जब भी वो उसे आईना दिखाने की कोशिश करती है तो वो अपनी उनके साथ खींची गई तस्वीरें दिखाकर ब्लैकमेल करने लगता है इसलिए उसकी पोल आज तक नहीं खुल पाई। इसे महज़ इत्तेफ़ाक ही कह लो कि मैं उसे जानता हूं और तुम्हारी किस्मत अच्छी थी.विजय ने कहा।

विजय ने फिर कहा अच्छा उसने तुमसे क्या कहा ये बताओ ?”

यही कि वो मुझसे प्यार करता है और शादी करना चाहता है इसलिए अपने सारे कपड़े और अपनी मां के सोने के गहने लेकर आ जाओ.”  स्मृति ने कहा।

विजय ने कहा क्या तुम उससे कभी मिली हो.?”

स्मृति ने जवाब दिया नहीं”.

विजय ने कहा कितनी बेवकूफ हो तुम जिसका रहने, खाने-पीने और भविष्य का कोई ठिकाना नहीं और तुम खुद भी आत्मनिर्भर नहीं हो तो इस रिश्ते का क्या भविष्य होगा ये सोचना चाहिए था तुम्हे, खैर अभी तुम्हारी उम्र ही कम है इस बात को समझने के लिए, तो दोष देना भी सही नहीं.”

विजय स्मृति से 5 साल बड़ा था और वो उसे भी राखी बांधती थी क्योंकि उसका कोई भाई नहीं था, सगा भाई ना होकर भी उसने स्मृति को बड़ी मुसीबत से बचा लिया।

स्मृति ने फ्लाइट की टिकिट के ढेर सारे टुकड़े करके डस्टबिन में डाल दिये।

उसे भी समझ में आ चुका था कि कभी कभी सफ़र में एकदम पीछे खींचकर ही आगे बढ़ा जा सकता है और विजय के साथ वापस अपने घर की तरफ चल पड़ी।

शिल्पा रोंघे

  © सर्वाधिकार सुरक्षित, कहानी के सभी पात्र काल्पनिक है जिसका जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है।

 

रविवार, 14 जून 2020

सुनो जैसी हो वैसी ही रहना।

चलो यार ज़रा कैंची लाना मैं इसके सामने के थोड़े से बाल काट दूं.”

रेडी हो ना   ? पीछे के बाल लंबे ही रहेंगे बस सामने से थोड़ा स्टाइलिश लुक आ जाएगा। क्या है आपका फ़ेस थोड़ा पतला है तो भरा भरा लगेगा.”

बहुत ज्यादा नहीं लेकिन थोड़ा बहुत ज़रुरी है मेक-अप भी, काजल की पतली धार, हल्के रंग की लिस्टिक लगाओ ना.”

ज्यादा बहन जी बनकर मत रहो, हां तुम वेस्टर्न ड्रेस ज्यादा अच्छी लगती हो.

स्माइल हां ये लो आ गई तुम्हारी तस्वीर हमेशा ऐसी ही रहा करो मोबाइल पर तस्वीर लेते हुए एक लड़की बोली.

तुम कह रही थी कि हम कितने लकी है कि हमारे बॉयफ्रेंड है अब तुम्हारा भी बन जाएगा बस जैसे हमने कहा है वैसे व्यवहार करना और वैसे ही रहना.”

क्या हुआ तो नर्वस हो गई आप.”

सब लड़कियों की बात स्मिता ने ध्यान से सुन ली।

स्मिता इंदौर के एक प्राइवेट होस्टल में रहती थी जहां रहकर वो फाइन आर्ट्स में पोस्ट ग्रेजुएशन कर रही थी।

वहां ज्यादातर लड़कियां वर्किंग थी, कुछ पढ़ाई भी कर रही थी।

उसकी कस्बाई संवेदनाओं को वो समझ चुकी थी तो सोचा कि उसकी झिझक थोड़ी कम कर दे।

इस बात को एक दिन बीत चुका था अगले दिन स्मिता कॉलेज नहीं गई क्योंकि एक्जाम पास आने की वजह से उसकी छुट्टियां शुरु हो चुकी थी। तभी उसकी एक और सहेली टीना जो कि उम्र में उससे 2-3 साल छोटी थी और एक प्राइवेट फर्म में काम करती थी ने, उसे अपने कमरे में अपने कमरे में बुलाया।

स्मिता ने पूछा ऑफिस नहीं गई आज

टीना ने कहा नहीं सिर में दर्द हो रहा था तो नहीं गई.”

कल की सारी बातें वो सुन चुकी थी वो स्मिता से बोली सुनों सभी लड़कियों की तरह मेरा भी बॉयफ्रेंड है इसलिए नहीं कि सबने बनाया है क्योंकि मुझे उससे और उसे मुझसे प्यार हो गया वो भी जब हमने सोचा नहीं था। प्यार जितना सुहाना दिखता है वो हमेशा हो ऐसा ज़रुरी नहीं रिलेशनशिप में ब्रेकअप भी हो सकता है और पैच-अप भी।

ये ज़रुरी नहीं कि हम किसी की देखा देखी उसी राह पर चल पड़े। अपने आप से ये सवाल पूछना बहुत ज़रुरी है कि हम क्या किसी को सचमुच पसंद करते है और दूसरा इंसान भी हमें और रिश्तें में आए उतार चढ़ाव के लिए क्या हम सचमुच तैयार है। तुम्हारा अकेलापन देखकर सबने तुम्हे सलाह दे डाली अब तुम ये तुम पर है कि तुम रिश्तें में रहकर अकेली महसूस करना चाहती हो या अकेले रहकर ख़ुश रहना चाहती हो? क्योंकि प्यार किया नहीं जाता हैं हो जाता है।

स्मिता ने कहा सच तो है तुम उम्र में मुझसे छोटी हो लेकिन ज्यादा समझदार हो.”

टीना ने कहा सुनो मेरा तो यही कहना है तुमसे जैसी हो वैसी ही रहना क्यों किसी के लिए खुद को बदलना. सबसे ज्यादा ज़रुरी है खुद में ख़ुश रहना तभी हम किसी दूसरे के साथ ख़ुश रह पाएंगे.”

शिल्पा रोंघे

 

  © सर्वाधिकार सुरक्षित, कहानी के सभी पात्र काल्पनिक है जिसका जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है।

 

 

 

 


मंगलवार, 9 जून 2020

दहेज या प्यार ?




श्याम गहरे सांवले रंग का लड़का था जिसका कद 5 फीट 8 इंच था और उसकी काठी मध्यम थी, शायद उसके  सांवले सलौने  और मनोहर रुप के चलते ही उसके माता-पिता ने उसका ये नाम रखा था। वो अपने पड़ोस में रहने वाली लड़की की तरफ काफी आकर्षित था, जो कि एक प्राइवेट अस्पताल में नर्स थी। मध्यम कद काठी की उस लड़की का नाम उसके रुप के अनुरुप ही "श्वेता" था, वो अत्यंत गौरवर्ण थी और उसके बाल रेशम की तरह मुलायम और लंबे थे, उसके गालों पर पड़ने वाले डिंपल ने उसकी सुंदरता में चार चांद लगा दिए थे. उसके नैन नक्श भी ठीक ठाक थे।

28 वर्षीय श्याम अपने शहर के कोर्ट में सरकारी नौकरी में था। उसकी दो और बहनें थी जो कि अभी पढ़ रही थी एक बीए पास हो चुकी थी और प्रशासनिक अधिकारी बनने का सपना देख रही थी, तो दूसरी बहन फ़ैशन डिज़ायनिंग के आखिरी साल में पढ़ रही थी।

श्वेता भी श्याम की भावनाओं से वाकिफ़ थी और कहीं ना कहीं उसे पसंद करने लगी, वो कुछ महीने पहले ही श्याम के पड़ोस वाले घर में किराए से रहने आई थी। उसकी मां विधवा थी और एक छोटा भाई था जो कि एमबीए के पहले साल में था, उसकी मां पिता के जाने के बाद सिलाई-कढ़ाई का काम करके घर चला रही थी लेकिन घर खर्च चलाना मुश्किल था तो ऐसे में श्वेता ने नर्सिंग का प्रशिक्षण लेकर अस्पताल में काम करना शुरु कर दिया। उसकी नौकरी को 6 साल हो चुके थे वो पूरे 27 बरस की हो चुकी थी, उसके लिए कई रिश्ते आ रहे थे लेकिन श्वेता की मां चाहती थी कि उसके भाई की पढ़ाई लिखाई पूरी हो जाए और जब वो अपने पैरों पर खड़ा हो जाए तभी  श्वेता की शादी हो जिससे उन्हें कोई आर्थिक दिक्कत ना हो।

एक दिन श्याम घर पर अकेला था उसकी मां और बहनें किसी रिश्तेदार के यहां गई हुई थी, अचानक उसके घर की डोरबेल बजी। श्वेता दरवाजे पर खड़ी थी श्याम तो जैसे इसी बात का इंतज़ार कर रहा था कि कब वो दिन आए जब वो श्वेता से रुबरु हो। उसके मन में यह डर भी था कि श्वेता की उसके प्रति क्या भावना है। वो उसे अपने लायक समझती है भी या नहीं।

श्याम ने कहा कैसे आना हुआ आपका? बैठिए.”

जी मेरे घर का वाटर प्यूरीफ़ायर खराब हो गया है तो क्या आप किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हो, जो इसे सुधार दे.” श्वेता ने कहा।

जी ये लिजिए इलेक्ट्रिकल शॉप वाले का नबंर.श्याम ने कहा।

शुक्रिया, मैं चलती हूं.” श्वेता ने कहा।

अरे दो मिनिट बैठिए ना.”  श्याम ने कहा।

अरे मैं नाईट शिफ्ट करके आई हूं, बहुत थकी हुई हूं.” श्वेता ने कहा।

इसलिए तो कह रहा हूं श्याम ने कहा।

श्याम फिर कहा मेरे हाथ की बनी चाय पियो सारी थकान मिट जाएगी.”

श्वेता तो यही चाहती क्योंकि घर जाकर तो ना उसके भाई ना उसकी मां को यह फ़िक्र रहती कि वो भी इंसान है। तभी श्याम गरमागरम चाय और बिस्किट ले आया। दोनों में काफी देर गुफ़त्गू हुई और बातों ही बातों में दोनों ने एक दूसरे का फ़ोन नंबर ले लिया।

अब दोनों में फिर कुछ दिन मुलाकात नहीं हुई, श्वेता की नाईट शिफ्ट चल रही थी तो वो सीधे घर पर आकर खाना खाकर सो जाती और श्याम कोर्ट जाने के लिए निकल पड़ता लेकिन श्याम श्वेता के फ़ोन पर रोज़ मैसेज करने लगा, कभी-कभी उसके इमोशनल मैसेज को देखकर श्वेता परेशान हो उठती क्योंकि उसे अपनी ड्यूटी के दौरान किसी भी तरह का व्यवधान पसंद नहीं था लेकिन वो ये भी नहीं चाहती थी कि श्याम उसकी नज़रों से दूर हो।

एक दिन श्याम ने उसे मैसेज करके पूछ लिया क्या तुम  मेरी हमसफ़र बनोगी ?”

श्वेता ने जवाब दिया तुम अपनी मां से पूछो कि वो इस बारे में क्या सोचती है?”

तभी श्याम ने कहा मम्मी से क्या पूछना वो मेरी ख़ुशी में ही ख़ुश रहेगी, नहीं तो मैं तुमको बिना सहमति ही ले जाउंगा.” श्याम ने अति-आत्मविश्वास में आकार बहुत बड़ी-बड़ी बातें कर डाली।

श्वेता ने अपनी मां को किसी तरह से इस रिश्ते के लिए मना लिया। दोनों एक ही बिरादरी के थे, तो ज्यादा परेशानी भी नहीं आई।

तभी श्वेता की मां का श्याम को फ़ोन आया कि वो अपनी मां को लेकर उनके घर पर आए. श्याम बहुत ख़ुश था वो जैसे ही इस बारे में अपनी मां से बात करने पहुंचा तो उसकी मां काफी नाराज़ हुई। उन्होंने कहा तुमने सोच भी कैसे लिया कि मैं उस लड़की के लिए हां कहूंगी, उसके परिवार के पास रहने को मकान तक नहीं है और उसकी मां और भाई की जिम्मेदारी अलग। तुम्हारें लिए कई अच्छे घरों के रिश्ते आ रहे है, 10-20 लाख दहेज भी देने को तैयार है। तुम अपनी बहनों की भी तो सोचो जिनकी शादी में भी काफ़ी खर्चा आने वाला है कौन करता है बिना दहेज के शादी आजकल, कम से कम तुम्हारे दहेज से मिले पैसे से ये समस्या तो ख़त्म हो जाएगी। मेरा अपना कोई स्वार्थ नहीं है लेकिन मैं पूरे परिवार के बारे में सोचती हूं, मैं कतई उसकी मां से नहीं मिलुंगी, तुम श्वेता से माफी मांग लो और उससे दूर ही रहो.

अब श्याम के पैरों तले ज़मीन खिसक गई थी वो अपनी घर की जिम्मेदारियों से भी नहीं भाग सकता था क्योंकि वो घर में बड़ा था और उसके पिता की बचपन में ही मौत हो गई थी उसकी मां ने पिता की पेंशन पर जैसे तैसे उसे पढ़ाया लिखाया।  उसकी अपनी मां से बगावत करने की हिम्मत नहीं थी और श्वेता को भूल पाना भी मुश्किल था।

उसकी रातों की नींद उड़ चुकी थी ये सोचकर कि वो अब श्वेता को क्या मुंह दिखाएगा क्योंकि शादी की बात तो उसने ही छेड़ी थी। तभी उसे अपनी दोस्त की याद आई जिसका नाम प्रभा था जो कि एक वकील थी और ज्यादातर तलाक के केस लड़ती थी। एक दिन कोर्ट परिसर के बाहर के केंटीन में उसने प्रभा से मुलाकात की, प्रभा की उम्र 32 साल थी और वो काफी महत्वाकांक्षी स्वभाव की थी जो शादी की झंझट में फंसना नहीं चाहती इसलिए अविवाहित रहने का फ़ैसला कर चुकी थी। श्याम ने सारी बात प्रभा को बताई और कहा तुम तो दो लोगों को अलग करवाने का काम करती हो लेकिन इस बार सुलह करवानी है तुमको.”

प्रभा ने कहा मैं किसी को अलग नहीं करवाती लोग खुद आते है तलाक का केस लेकर, मैं तो सिर्फ अपना फर्ज़ निभाती हूं. मैं लोगों को पहले मतभेद सुलझाने का सुझाव भी देती हूं, अगर कोई अपनी बात पर अड़ा ही रहे तो मैं क्या कर सकती हूं? अगर मैं उनका केस नहीं लडूंगी तो कोई और वकील लड़ लेगा.

प्रभा ने आगे कहा ओह तो तुम्हारी मां शादी करना चाहती है या सौदा?”

श्याम ने कहा अरे यार कैसी बात करती हो तुम.

सॉरी दोस्त लेकिन लग तो ऐसा ही रहा है कि उनको तुम्हारी ख़ुशियों की कोई परवाह नहीं है. तुम्हारी बहनें पढ़ी लिखी है. वो खुद अपने पैरों पर खड़ी हो सकती है और खुद भी ऐसा लड़का ढूंढ सकती है जो उनसे पैसों के लिए नहीं प्यार के लिए शादी करे. तुम भी सरकारी नौकरी में हो तो तुम शादी के खर्चें में योगदान दे सकते हो. अगर तुम अपनी मां की बात मानते हो तो हो सकता है  कि आजीवन दुखी रहो और अगर उनके ख़िलाफ़ जाते हो तो कुछ वक्त के लिए वो तुमसे नाराज़ रह सकती है. अब तुम ही ये तय करो कि तुमको अपने जीवन में क्या करना है ?”

श्याम को अपने सवाल का जवाब मिल चुका था।  वो प्रभा को धन्यवाद देते हुए अकेले ही अपनी बाईक लेकर श्वेता की मां से रिश्ते की बात करने उसके घर की तरफ निकल पड़ा। श्याम भी सोच रहा था सच तो है अपने परिवार की कुछ दिनों की नाराज़गी से बचने के लिए अपनी भावनाओं का कत्ल करना बेवकूफ़ी ही है।

 शिल्पा रोंघे

  © सर्वाधिकार सुरक्षित, कहानी के सभी पात्र काल्पनिक है जिसका जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है।

 

 

 

 

रविवार, 7 जून 2020

मेरे अपने ?

पुराने समय की बात है नगर में सेठ ध्यानचंद रहते थे। वो अपने एक बेटे और पत्नी के साथ सुखमय जीवन व्यतीत कर रहे थे। उनकी दो बेटियां भी थी जिनका विवाह हो चुका था। उनके पुत्र का विवाह भी पड़ोसी शहर में रहने वाले कुलीन घर की कन्या से हुआ था। उनकी बेटे के भी दो छोटे – छोटे पुत्र थे। सब कुछ अच्छा चल रहा था, लेकिन सेठ को धीरे -धीरे महसूस होने लगा कि उसके बेटे बहू और पत्नी उसकी सेवा तो बहुत करते है लेकिन ऐसा बहुत कम होता था कि वो खाली वक्त में उनसे बात करने को आए हो, ना वो उनसे कभी अपने सुख की बात कहते ना कभी दुख की बात कहते, अपने ही घर में वो पराया सा महसूस करने लगे।

सेठ को एकांत में तपस्या करना बहुत अच्छा लगता था उन्होंने सोचा क्यों ना जंगल में जाकर एक कुटिया बनाई जाए और कुछ दिन तपस्या की जाए, भूखे प्यासे रहकर कुछ दिन तपस्या की तो स्वंय भगवान प्रसन्न होकर प्रकट हुए और उन्होंने पूछा बोलो वत्स तुम मुझसे क्या चाहते हो?”

तभी ध्यानचंद बोले मुझे ऐसी शक्ति दे दो कि मैं सामने वाले का मन पढ़ लूं.”

भगवान ने कहा ठीक है मैं तुम्हें ये वरदान एक वर्ष के लिए देता हूं, याद रखना उससे पहले ना ये शक्ति खत्म होगी और ये अवधी खत्म होने के बाद ना ये शक्ति तुम्हारे पास रहेगी.”

ध्यानचंद बोलो जो आपकी इच्छा प्रभू

कुछ ही देर में भगवान उसकी दृष्टि से ओझल हो गए।

घर जाकर सेठ बहुत खुश थे लेकिन उन्होंने इस वरदान वाली बात किसी को नहीं बताई।

एक दिन  उन्होंने उनकी पत्नी को आवाज दी अरे सुनती हो मेरे लिए एक गिलास पानी लाना.”

तभी उनकी पत्नी ने  उनके हाथ में पानी लाकर दिया।

सेठ ने कहा कब से आवाज लगा रहा हूं सुनाई नहीं देता है क्या तुमको ?”

मैं रसोईघर में थी ये कहकर उनकी पत्नी वहां से चली गई।

वो सोचने लगी कितना क्रोधी  है ये इंसान, ज़रा देर क्या हुई तुरंत प्रतिक्रिया दे देते है। बीवी ना हुई कोई नौकरानी ही हो गई। मेरे माता -पिता ने मुझे कैसे इंसान के पल्ले बांध दिया.”

सेठ ने उसके मन की बात जान ली और सोचा कि अब वो उसे किसी काम के लिए परेशान नहीं करेंगे।

अगले दिन उनका पुत्र उनके पास आया कहने लगा पिताजी आपने अभी तक अपनी जमीन मेरे नाम नहीं की है जल्दी ही वसीयत बना दीजिए आपकी उम्र का भी कोई भरोसा नहीं है.”

सेठ ने पलटकर जवाब दिया बना दूंगा थोड़ा वक्त दो.”

तभी उनका बेटा बिना कुछ बोले चला गया।

तभी सेठ ने उसके मन की बात पढ़ ली, “ओह सब कुछ दबाकर बैठे हुए हैं इन्हें तो हमारी खुशियों से मतलब ही नहीं है ये पिता है या जल्लाद.”

तभी सेठ ने सोचा कि वो कुछ हिस्सा अपने पास रखकर अपने बेटे को दे देंगे।

एक दिन उन्होंने अपनी बहू से कहा कि वो अपनी संपत्ती का कुछ हिस्सा अपनी बहनों को भी देना चाहते है।

तभी बहू ने कहा आपकी जो इच्छा पिताजी.” उसके मन में आया विचार वो पढ़ चुके थे सेवा करे हम मेवा खाएं बहनें, पता नहीं ये इस दुनिया और कितना लंबा जीवित रहेंगे और हमें अपनी उंगलियों पर नचाएंगे.

सेठ का परोपकारी स्वभाव का था लेकिन उसके कंजूस और हमेशा आदेश देने वाले स्वभाव  के कारण उनके घर के लोग उनसे थोड़े नाराज़ रहने लगे थे लेकिन ये बात जताते नहीं थे।

सबके विचार जानने के बाद सेठ का मन दुख से भर गया, ओह मैंने ये कैसा वरदान मांग लिया अब तक तो सब कुछ ठीक चल रहा था लेकिन अचानक ही मन कड़वाहट से भर गया है, ये वरदान तो एक साल तक यूं ही चलने वाला है तब तक तो बात और भी ज्यादा बिगड़ जाएगी, जाने कितनी अनकही बातें मेरे सामने आ जाएंगी नहीं जानना चाहता मैं और ज्यादा सच.

तभी शाम को उन्होंने अपने बेटे, पत्नी और बहू को बुलाकर कहा सुनो मैं एक साल के लिए बनारस जाना चाहता हूं शांति की तलाश में, फिर लौट आउंगा.”

सब ने उनके फ़ैसले को स्वीकार कर लिया ये सोचते हुए कि चलो वो अब कम से कम अपनी इच्छा का जीवन तो जी सकेंगे।

अगले दिन सेठ अपने घर से बनारस की तरफ जाने के लिए निकले सभी ने उनको हंसते हंसते अलविदा कहा।

तभी सेठ ने सोचा सच है कभी अपनों को परखना नहीं चाहिए अगर ऐसा कर लो तो रिश्तों के बीच अपनापन नहीं रह पाता है।

शिल्पा रोंघे

 

© सर्वाधिकार सुरक्षित, कहानी के सभी पात्र काल्पनिक है जिसका जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है।

 

 

 

 


व्यंग्य-आदर्श महिला बनने की ट्रेनिंग

  नीरज ने सोचा कि शहर की लड़कियों को आदर्श कैसे बनाया जाए, इसकी ट्रेनिंग दी जाए, तो कई लड़कियों की रुचि उसमें जगी। शहर की कई लड़कियों ने...