गुरुवार, 21 मई 2020

औकात- एक प्रेरणादायी कथा

सुरेखा की शहर के बीचों-बीच कपड़ें की बहुत बड़ी दुकान थी। हर तरह की महंगी साड़ियां और सलवार कमीज के कपड़ें वहां मिलते थे। अच्छी ख़ासी आमदानी होती थी उसकी। क्योंकि अकेले दुकान संभालना मुश्किल था तो उसने कांता को अपनी दुकान पर काम करने के लिए रख लिया। कांता को उसके काम के लिए पूरे 2000 हजार रुपए मिला करते थे। अपने घर के काम निपटाकर वो ठीक सुबह 9 बजे दुकान पर पहुंच जाया करती थी और रात 8 बजे तक पूरे मन से दुकान पर काम किया करती थी, ग्राहकों को बहुत सारे कपड़े दिखाने की जिद खुशी खुशी पूरा कर दिया करती। उसके पति एक कारखाने में काम करते थे लेकिन उनकी तनख़्वाह में घर खर्च चलाना मुश्किल था तो वो सुरेखा के यहां काम करने लगी।

 

कई बार ग्राहक कपड़ें खरीदते भी नहीं और उसे सारे कपड़ों की घड़ी खुद करनी पड़ती और उन्हें पैक करके रखना पड़ता था। उसकी उपस्थिती में सुरेखा को भी बहुत ज्यादा चिंता नहीं होती थी वो सिर्फ मेन काउंटर पर बिलिंग का काम करती या फिर ग्राहकों से मोल भाव का काम करती थी।

सुरेखा के पति दुबई में काम करते थे ऐसे में दुकान संभालने की सारी जिम्मेदारी सुरेखा पर ही आ गई थी। एक दिन सुरेखा की बेटी घर ना जाकर सीधे दुकान पर आ गई क्योंकि सुरेखा उसके बैग में घर की अतिरिक्त चाबी रखना भूल गई। कांता सुरेखा की बेटी से बहुत प्यार से बात करने लगी और सुरेखा की बेटी ने भी उसको अपने बैग से निकालकर चॉकलेट खाने के लिए दी।

तभी सुरेखा की बेटी ने कांता से पूछा आपके बच्चे कौन से स्कूल में पढ़ते है?

तब जवाब में कांता ने कहा मेरी एक ही बेटी है जो कि पास के ही सरकारी स्कूल में पढ़ती है क्लॉस 8 में

सुरेखा की बेटी ने कहा मतलब वो मेरी ही उम्र की है मैं इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ती हूं जो कि शहर का नंबर वन स्कूल है। आप भी उसे मेरे स्कूल में डाल दो वो काफी इन्टेलिजेन्ट हो जाएगी

इससे पहले की कांता कुछ जवाब दे पाती सुरेखा ने अपनी बेटी को बीच में ही टोक दिया जिसकी जिसकी जितनी फ़ीस खर्च करने की औकात होती है वो उस स्कूल में अपने बच्चों को डालता है, तू ज्यादा ज्ञान मत झाड़

हालांकि सुरेखा का इरादा कांता को नीचा दिखाने का नहीं था लेकिन अंजाने में कही गई उसकी बात कांता के मन को लग गई, लेकिन वो चुप ही रही।

दो महीने बाद एक दिन सुरेखा ने कांता को चाय नाश्ता कराया और मिठाई खिलाई तो कांता ने पूछा इस मेहरबानी की वजह?”

तो सुरेखा ने बताया की उसकी बेटी ने पूरे स्कूल में टॉप किया है।

कांता ने कहा बधाई हो मैडम

 वो आगे बोली आज मैं भी आप का मुंह मीठा करना चाहती हूं

सुरेखा ने कहा "क्यों" ?

कांता ने कहा मेरी बेटी ने पूरे जिले में पहला नंबर पाया है

 सुरेखा ने कहा बधाई

असल में वो अंदर से बेहद नाख़ुश थी क्योंकि कांता की बेटी की उपलब्धि उसकी बेटी से बहुत बड़ी थी।

आज उसे अपने कहे शब्दों का बड़ा पछतावा हुआ लेकिन वो बयां नहीं कर पा रही थी, आज उसे अपनी ही औकात बहुत मामुली जो लग रही थी।

शिल्पा रोंघे

 

© सर्वाधिकार सुरक्षित, कहानी के सभी पात्र काल्पनिक है जिसका जीवित या मृत व्यक्ति

से कोई संबंध नहीं है।



 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

व्यंग्य-आदर्श महिला बनने की ट्रेनिंग

  नीरज ने सोचा कि शहर की लड़कियों को आदर्श कैसे बनाया जाए, इसकी ट्रेनिंग दी जाए, तो कई लड़कियों की रुचि उसमें जगी। शहर की कई लड़कियों ने...