शनिवार, 16 मई 2020

औरत का किरदार






अपने स्टील के डब्बे में रखे कुछ गुलाब जामुन में से एक को निकालकर प्रीति ने अनिमेष के हाथ में जबर्दस्ती थमा दिया। उसके बाद अपने दो साल के बच्चें को खिलाने के बाद अपने पति के जबरन मुंह में ठूंस दिया। ऐसी मिठाई खाकर भी ख़ुश नहीं महसूस कर रहा था अनिमेष उसका अतीत जो उसके सामने बैठा था। पांच साल पहले की ही तो बात है जब अनिमेष और प्रीति एक ही कॉलेज में कम्पयूटर साइंस में स्नाकोत्तर की पढ़ाई कर रहे थे, प्रीति उसकी जूनियर थी लेकिन पढ़ाई में सामान्य और अनिमेष काफी तेज था, प्रीति हमेशा उससे नोट्स मांगती रहती थी और वो मना भी नहीं कर पाता था। प्रीति  करीब पांच फीट दो इंच के कद वाली खूबसूरत गेंहूए रंग की लड़की थी बाकि लड़कियों की तरह उसे मेक-अप करना पसंद नहीं था और फ़ैशन सेंस भी कुछ ख़ास नहीं था हमेशा सलवार कमीज या सिंपल जीन्स पहनकर कॉलेज जाती थी। अनिमेष भी गेहूंए रंग का करीब का मध्यम कद का बेहद खूबसूरत नौजवान था कई लड़कियां उस पर मरती थी चाहे मुहल्ले की हो या कॉलेज की, लेकिन उसकी रुची तो अपनी पढ़ाई में ही थी, घर में दबाव जो था कि अच्छी से अच्छी जगह कैम्पस प्लेसमेंट पाकर दिखाने का। प्रीति का धीरे -धीरे कब अनिमेष को पसंद करने लगी उसे पता ही नहीं चला, अब वो बिना वजह ही इंटरवल में आकर उससे बात करने लगी, अनिमेष के दिल में भी उसके लिए हल्का फुल्का झुकाव था लेकिन उसने ज़ाहिर नहीं किया उसके उदासीनता भरे व्यवहार को देखकर प्रीति ने भी उससे बात करना कम कर दिया। अनिमेष अभी सिर्फ अपने करियर पर ध्यान देना चाहता था उसे लगा कि प्यार और शादी ये तो बहुत दूर की बात है। एक दिन अनिमेष का कैंपस प्लेसमेंट हो गया और उसकी पुणे की एक कंपनी उसकी जॉब लग गई। धीरे धीरे उसके लिए रिश्ते आने लगे। उसकी मां चाहती थी कि किसी गोरी चिट्टी खूबसूरत और प्रतिष्ठित घर की पढ़ी- लिखी लड़की से उसका रिश्ता तय हो जाए तो उसे कई तस्वीरें भेजती रहती, अनिमेष भी इन तस्वीरों में उलझा रहता पर पता नहीं क्यों उसके दिल कोई भा ही नहीं रही थी किसी से मन नहीं मिलता तो किसी से मिज़ाज  इन्ही उलझनों के बीच वो प्रीति को बिल्कुल भूल गया।

एक दिन वो अपने माता पिता के घर उनसे मिलने नागपुर पहुंचा और दो तीन दिन वहां रहने के बाद पुणे वापस जाने के लिए स्टेशन की ओर निकला। ठीक 9 बजे पुणे से नागपुर जाने वाली गाड़ी का इंतज़ार करने लगा और 10 मिनिट बाद ट्रेन आ गई और वो उसमें अपनी सीट ढूंढने लगा और 7 नबंर की बर्थ पर बैठ गया। आज अचानक उसने देखा कि ट्रेन के एसी कोच में प्रीति उसके सामने बैठी थी जिसे उसने कभी याद ही नहीं किया लेकिन पता नहीं क्यों उसे विवाहिता के रुप में देखकर उसे बुरा लगा।

प्रीति ने भी कई जगह जॉब की कोशिश की लेकिन उसे नहीं मिल पाई और उसके लिए पुणे के ही एक इंजिनियर का रिश्ता आ गया जो कि उससे 4 साल बड़ा था, जो गोरे रंग का एक मध्यम कद काठी और सामान्य नैन नक्श वाला लड़का था।

प्रीति तब शादी नहीं करना चाहती थी लेकिन उसके रिश्तेदार उसके घरवालों पर दबाव बनाने लगे कि घर आए रिश्ते को ठुकराओं मत। कहने लगे वो कोई अप्सरा थोड़े ही है जो ज़िंदगी भर लड़कों की लाईन लगी रहेगी। प्रीति की शादी को 4 साल हो चुके थे। प्रीति अपने पति के साथ बेहद ख़ुश थी और उसने अपने पति से अनिमेष का परिचय कराया

“  ये मेरे सीनियर है इनकी मदद के बगैर मेरा पास होना भी मुश्किल था, पुणे में ही रहते है

प्रीति के पति ने कहा कभी आइए हमारे घर

अनिमेष ने भी हां में जवाब दिया दोनों में 10-15 मिनिट बातें हुई और गाड़ी पुणे स्टेशन पर आ ठहरी।

प्रीति और उसके पति ने अनिमेष को अलविदा कहा और अपने अपने रास्ते निकल पड़े।

अनिमेष भी सोच रहा था हमारे समाज में औरत का किरदार समझना वाकई मुश्किल काम होता है। दूसरों की ख़ुशी में ही उसे अपनी ख़ुशी समझनी पड़ती है। शायद वो पानी सी ही होती है जिस बर्तन में ढालो ढल जाती है।

शिल्पा रोंघे



© सर्वाधिकार सुरक्षित, कहानी के सभी पात्र काल्पनिक है जिसका जीवित या मृत व्यक्ति

से कोई संबंध नहीं है।




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

व्यंग्य-आदर्श महिला बनने की ट्रेनिंग

  नीरज ने सोचा कि शहर की लड़कियों को आदर्श कैसे बनाया जाए, इसकी ट्रेनिंग दी जाए, तो कई लड़कियों की रुचि उसमें जगी। शहर की कई लड़कियों ने...