बुधवार, 29 जुलाई 2020

नीली जूती वाली लड़की


समुंदर की विशाल लहरें विशाखा के पैरों से टकरा रही थी वो समुंदर के और भीतर चली जा रही थी। जैसे कि अपना सारा दुख दर्द वो पानी से कह देना चाहती हो। आज वो पूरी तरह भय मुक्त हो चुकी थी। तभी विष्णु की आवाज आई। ये विशाल लहरें तुम्हें निगल जाएंगी क्या इसका आभास नहीं तुम्हें। कौन सा हम इस दुनिया में जीवन- भर रहने को आए है, जो इतना डर कर रहना।

विष्णु ने कहा लगता है तुम्हे दर्शनशास्त्र सूझ रहा है.”

वैसे आपका शुभनाम

विष्णु चेन्नई से आया हूं.”

तुम्हारा हिंदी बोलने का लहजा देखकर लगा ही। वैसे मैं भी महाराष्ट्रीयन हूं तो हिंदी समझ लेती हूं लेकिन थोड़ा लिखने पढ़ने में मुश्किल होती है.”

बात करते-करते दोनों किनारे को छोड़कर रेत से घिरे एक छोटे से पत्थर के पास बैठ गए। वैसे मेरी आदत है अंजान लड़कों से बात नहीं करने की लेकिन तुम भले लड़के लगते हो।

यूं ही गुफ़्तगू करते करते विष्णु की निगाह विशाखा के लिबास पर पड़ी एक लंबा सा स्कर्ट पहना हुआ था उसने, उसके साथ मैचिंग के ब्लू जूते और ब्लू मोजे।

मैं यही रेलवे में नौकरी करता हूं.”

और मैं केमेस्ट्री पढ़ाती हूं एक स्कूल में.”

थोड़ी देर गुफ़्तगू करने के बाद विशाखा ने ढलते सूरज की ओर देखा जो मानो विदा लेने को बेकरार था और शायद उसे भी घर जाने को कह रहा था।

थोड़ी देर बात वो घर पहुंची तो देखा उसकी मां एक प्लास्टिक सर्जन से बात कर रही थी

हां काला धब्बा है बिल्कुल पैर के बीचो बीच

क्या कहा आपने ठीक हो सकता है.”

जितनी फ़ीस बताई हमको मंजूर है.”

परसो का अपाइनमेंट लिख लिजिए.

दूसरे दिन फिर विशाखा समुंदर किनारे टहलने के लिए आई, विष्णु की निगाह फिर उसके नीले जूतों पर पड़ी जिसमें उसके पैर बिल्कुल दिखाई दे नहीं रहे थे जो कि समुद्र की लहरों से पूरी तरह भीग जाया करते थे।

उसने सोचा वजह पूछ लें हर बार नीले जूते और मोजे ही क्यों चप्पल या सेंडल क्यों नहीं ?

फिर उसे लगा लड़कियां ना जाने किस बात का कब बुरा मान जाए तो चलो छोड़ ही दिया जाए इस बात को।

विशाखा गोरे रंग की मध्यम कद और घुंघराले बालों वाली साधारण नैन नक्श वाली लड़की थी। उसकी उम्र 28 साल थी।

विष्णु भी करीब उसकी ही उम्र का था जो कि स्थानीय निवासी नहीं था और मुंबई आए हुए उसे करीब 6 महीने ही हुए थे तो उसके चिर परिचित यहां थोड़े कम ही थे। ऐसे में वो विशाखा से शहर की कई अपरिचित बातें जानने लगा था और सलाह लेने लगा।

एक दिन विशाखा समुद्र किनारे टहलने आई ही नहीं, ये उन दिनों की बात है जब सभी मोबाईल फोन नहीं रखा करते थे।

मतलब कि लैंडलाईन से ही काम चला लेते थे जो कि उसके और विष्णु के घर पर था. उसने नंबर भी मांगा नहीं क्या पता उसके घर के लोगों को अच्छा लगता या नहीं उसका फोन करना, विशाखा ने भी विष्णु का नंबर नहीं मांगा, खैर उसके और विष्णु के बीच दोस्ती से आगे बात बढ़ पाई ही नहीं।

विशाखा कुछ दिनों बाद समुंदर किनारे आई और विष्णु को ढूंढने लगी लेकिन उसका ट्रान्सफर वापस हैदराबाद हो गया।

उन दोनों को मिले हुए 15 साल हो चुके थे। अचानक एक दिन एक औरत अपने 10 साल के लड़के के साथ विष्णु से पूछने लगी हैदराबाद से मुंबई जाने वाली ट्रेन को कितना वक्त है ?

क्योंकि विष्णु रेलवे में ही काम करता था तो उसे शक हुआ, वो बोली क्या तुम विष्णु हो?”

विष्णु ने कहा हां आप कौन ?”

विशाखा शादी के बाद काफी मोटी हो गई थी तो थोड़ा पहचानने में मुश्किल हुई।

हां मैं विष्णु हूं.”

मैं विशाखा समुद्र किनारे मिली थी तुमको.”

ओह नीली जूती वाली उसके मुंह से निकल गया।

वो हंसने लगी कहने लगी मेरे पैर पर केमेस्ट्री लैब में केमिकल फैल गया था.

जिसकी वजह से काला धब्बा बन गया तो मैं हमेशा जूते और मोजे पहनकर रहती थी।

तो क्या हुआ ? विष्णु ने कहा।

क्योंकि लड़की के पैरों से समृद्धी का परिचय होता है तो लड़के वालों की मां उसके पैर देखती थी जिसमें वो काला दाग भी दिख जाता तो बात वहीं आकर रुक जाती थी।

इस वजह से उसे अपने माता पिता के ताने सुनने पड़ते थे साथ ही रिश्तेदार भी उसको लेकर कड़वी बातें करते थे।

एक दिन तंग आकर उसकी मां ने उसके पैर की प्लासटिक सर्जरी करवा कर वो दाग ही हटवा दिया।

कुछ महीनों बाद उसकी शादी फ़िजिक्स एक प्रोफ़ेसर से हो गई।

थोड़ी ही देर में ट्रेन आ गई उसने इशारे से कहा कि वो जो अगली स्टेशन पर बुक स्टॉल से पेपर खरीद रहे है वो उसके पति है, और वो तेजी से उसकी तरफ बढ़ी, दोंनो पति पत्नी और उसका बेटा ट्रेन में सवार होकर चल दिए।

जाती हुई ट्रेन को देखकर विष्णु के दिल में ख़्याल आया कि कितनी छोटी छोटी बात को लेकर परेशान हो जाते है लोग। चांद में भी तो दाग है तो क्या वो खूबसूरत नहीं होता है ?

शिल्पा रोंघे

 

 

 

  © सर्वाधिकार सुरक्षित, कहानी के सभी पात्र काल्पनिक है जिसका जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 


सोमवार, 27 जुलाई 2020

थोड़ी सी बेवफाई


23 साल की शालिनी अपनी नई जॉब को पाकर बेहद ख़ुश थी चलो कि अब उसे अपनी पॉकेट मनी के लिए अपने घरवालों के सामने हाथ तो नहीं फैलाना पड़ेगा। साथ ही वो अपने पैशन को भी फॉलो कर सकेगी।

 

3 महीने की इंटर्नशिप के बाद उसकी छोटे से युट्यूब चैनल में जॉब पक्की हो गई । शुरु- शुरु में सब ठीक चला लेकिन जैसे ही दिन गुज़रते गए उसके उस चैनल के संपादक से बनना कम हो गया।

वजह था उसका नारीवादी लेखन जो पितृसत्तामक सोच रखने वाले संपादक को पसंद नहीं आ रहा था।

एक दिन उसने एक वीडियो में बताया कि कैसे हमारा समाज एक पुरुष की बेवफ़ाई को उसका अधिकार समझता आया है और यही काम यदि एक महिला करे तो किस तरह से लोग उसके चरित्र पर लांछन लगाने लगते है।

तभी संपादक ने बड़े ही मिठास भरे स्वर में कहा

इसमें नया क्या है पहले भी बहु विवाह होता था वो तो कानून बनने के बाद सब एक पत्नी रखने लगे।

लेकिन कुछ भी नहीं बदला है आज भी लोग अपनी पत्नी के अलावा पराई औरत से रिश्ता रखते है। ये एक पुरुष का अधिकार है इसका मतलब ये नहीं कि उसका अपनी पत्नी के लिए प्यार कम हो गया है.”

 

जो सदियों पहले होता आया है क्या हर उस बात को आप सही मानते है चाहे वो बाल विवाह हो या सति प्रथा हो जवाब दीजिए ?”

 

तुम बात का बतंगड़ मत बनाओ अगर एक आदमी अपनी पत्नी अंधेरे में रखते हुए धोखा दे भी दे तो उसका क्या बिगड़ेगा ?”

 

शालिनी ने सोचा शायद ये महोदय आधुनिक विचारों वाले होगे शायद इसलिए ऐसे विचार होंगे।

 

तभी शालिनी तपाक से बोली अगर यही काम एक औरत करे तो भी शायद कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा ?”

 

संपादक ने कहा निश्चित ही उस महिला का चाल चलन खराब होगा.”

 

शालिनी संपादक महोदय का दोहरा मानदंड देखकर काफी हैरान हुई।

वो मन ही मन सोचने लगी कि एक तरफ लोग पुरुषों के लिए अति उदार दृष्टिकोण रखते है तो वही महिलाओं के लिए अति संकीर्ण।

वहां कुछ दिन काम करने के बाद शालिनी  ने दूसरी कंपनी ज्वाइन कर लगी।

जैसे जैसे उसकी उम्र बढ़ती गई उसे समझ में आने लगा कि यह एक इंसान की सोच नहीं समाज में स्त्री और पुरुष के चरित्र को लेकर दोहरा रवैया रखना आम बात है। क्या जिस तरह एक स्त्री अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रख सकती है क्या पुरुष नहीं सकता है ? शायद ही वजह है कि हमारे समाज में महिलाओं के शोषण के मामले दिन ब दिन बढ़ रहे है। अश्लील साहित्य और सिनेमा पुरुष मानसिकता को कलुषित कर रहा है जिन्हें हर महिला आयटम नज़र आती है।

 

फिर भी अपने आस- पास उसने कई ऐसे पुरुषों को देखा कि जो अपने साथी के लिए वफ़ादार थे। जो बेवफ़ा थे उसके पीछे भी शायद कोई वजह रही हो लेकिन केवल स्त्री को ही चरित्र के पैमाने पर नापना कहीं ना कहीं समाज की सदियों पुरानी मानसिकता का परिचय देता है जो दीमक की तरह नारी समानता की किताब को खोखला कर रही है।

  © सर्वाधिकार सुरक्षित, कहानी के सभी पात्र काल्पनिक है जिसका जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। 

शिल्पा रोंघे

 

रविवार, 19 जुलाई 2020

अतीत का सुख



एक बार कि बात है एक कस्बे में पति और पत्नी रहते थे, दोनों की उम्र 25 साल थी वो दोनों ही विवाह के लिए मानसिक रुप से तैयार नहीं थे हालांकि दोनों की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी। दोनों ही सजातीय थे और दोनों के परिवार एक ही गांव में रहते थे तो उनके परिवार वालों ने सोचा क्यों ना इन दोनों का ब्याह कर दिया जाए। काफी ना नुकूर के बाद दोनों मान गए। लड़का बेहद गोरा था और लड़की का रंग गेहुआं और आकर्षक व्यक्तित्व था। दोनों गांव से दूर एक कस्बें में एक किचन और एक कमरे वाले घर में रहने लगे। लड़का शहर में एक छोटी सी नौकरी करने लगा जिसमें उसे केवल 5-6 हजार ही मिला करता था। दो हजार किराए में ही चले जाते थे। शादी के कुछ दिन तो ठीक चला फिर लड़का लड़की में थोड़ी अनबन होने लगी। लड़की कहने लगी दिनभर वो काम करके थक जाती है तो उसका मन होता है कि बाहर घुमने जाए लेकिन उसका पति बचत का बहाना बनाकर टाल जाता। लड़की ने भी एक दो स्कूल में टीचर की जगह के लिए अप्लाई किया था लेकिन उन्होंने कहा कि वो उसे बीएड होने के बाद ही लेंगे। लड़की को भी लगने लगा कि उसकी सहेलियों के पति अच्छा-खासा कमाते है तो उनका लाइफ़स्टाइल उनसे काफी अच्छा है और वो काफी पीछे रह गई है उनसे।

हालांकि दोनों पढ़ाई में बहुत अच्छे थे लेकिन अभी उनका वक्त नहीं आया था, लड़की अंग्रेजी में ग्रेजुएट थी और लड़का गणित में।

कई बार वो एक दूसरे की कमियां ढूंढते हुए बहस करने लगते, कई दिन बातचीत भी नहीं होती लेकिन एक वजह से दोनों को बात करनी पड़ती वो थी कि वो दोनों ही प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे थे तो लड़का लड़की को गणित पढ़ा देता और लड़की लड़के को अंग्रेजी।

शादी के दो साल बाद दोनों का चयन अधिकारी के तौर पर हो गया ऐसे में दोनों बहुत ख़ुश थे लेकिन एक बात पर दुखी थे कि दोनों का चयन अलग-अलग जिलों के लिए हुआ, शायद उनके एक जगह ट्रांसफर में कई साल लग जाए ये बात उन्हें खटक रही थी और वो सोच रहे थे जो पुराना वक्त था वो असल में एक अच्छा वक्त था शायद आगे कि व्यस्त ज़िंदगी में उन्हें पद पैसा और आराम मिल सकता है लेकिन उस साथ के लिए वो तरस जाएंगे जिसके लिए वो अपने नसीब को कोसते थे। ख़ैर स्थिती जैसी भी हो सुनहरे भविष्य के लिए वर्तमान के सुख को अनदेखा करना ही उनकी सबसे बड़ी भूल थी ये वो समझ चुके थे।


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रविवार, 12 जुलाई 2020

वीरान हवेली का राज





रात के 10 बजे थे। 18 साल की  रज्जो अपनी साइकिल से खेत से गुजरने वाले रास्ते से तेज-तेज गति में निकल रही थी। तभी धनिया वहां कुछ काम कर रहा था, बोला अरे इतनी रात को क्या काम है तुझे ? क्या प्रेमी से मिलने जा रही है जो अंधेरे का वक्त चुना है तुने, कुछ डर है कि नहीं तुझे, औरत जात है ज़रा संभालकर रहा कर।"

रज्जो ने कहा नहीं वो स्कूल से आते वक्त मेरा बैग गिर गया था, वो ढूंढने जा रही हूं.”

सुबह ढूंढ लेती ऐसी भी क्या जल्दी ?” धनिया ने कहा।

मैं आती हूं जल्दी ही.”

रज्जो के मां बाप सुबह उठकर खेत में काम करने के लिए उठते थे इसलिए वो नौ बजे ही सो जाते थे। तो रज्जो ने रात का वक्त ही चुना।

आगे रास्ते में काले काले कुत्ते भौंक रहे थे, वो कुछ देर रज्जो की साइकिल के पीछे दौड़े लेकिन जल्दी ही दूसरी दिशा में मुड़ गए।

दअरसल गांव के कुछ लड़कों ने अफवाह उड़ा रखी थी कि पुरानी हवेली में भूतों का वास है तो वहां जाना नहीं चाहिए। पुरानी हवेली को माणिकराम के पूर्वजों ने 150 साल पहले बनाया था जहां माणिकराम अपने बच्चों के साथ ही रहा करता था उसके 2 बेटों की शहर में नौकरी लग गई तो वो वहीं बस गए लेकिन माणिकराम अपनी पत्नी के साथ अपने जीवन के अंत तक वहीं रहा क्योंकि वो गांव छोड़ना नहीं चाहता था। उसकी मौत के 5 साल बाद भी उसके बेटे गांव आए लेकिन उन्होंने 8 कमरों की हवेली को बेचने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई क्योंकि वो शहर में काफी संपत्ती जमा कर चुके थे। हवेली भी काफी ज़र्जर हो चुकी थी गांव में अब कोई मकान खरीदना भी नहीं चाहता था क्योंकि वहां रोजगार के मौके ही नहीं होते है कुल मिलकार 50 परिवार ही बचे थे उस गांव में जो खेती बाड़ी से जुड़े हुए थे।

रज्जों ने सोचा वो आज सच पता लगाकर ही रहेगी। पुरानी हवेली के आस-पास भी एक दो टूटे फूटे मकान ही थे जिनमें कोई नहीं रहता था। रज्जों ने कुछ दूर अपनी साइकिल खड़ी की और धीमे कदमों से हवेली की तरफ बढ़ी और दरवाजे पर जा खड़ी हुई।

दरवाजा पुराना था, इस वजह से उसमें मोटी मोटी दरारें थी। जब रज्जों ने झांककर देखा तो गांव के ही कुछ लड़के शराब पी रहे थे और जुआ खेल रहे थे। ज़ोर जोर से खीं-खीं करके हंसने की आवाज आ रही थी। फिर रज्जों ने थोड़ी हिम्मत की और खिड़की से झांककर देखा तो वो दंग ही रह गई।

ये तो वही टीवी देख रहे है जो कुछ महीने पहले उसके घर से चोरी हो चुका था, उस पर वो लड़के मिडनाईट मूवी देख रहे थे। तभी उसका सिर अचानक से खिड़की पर लग गया तब हल्की सी आवाज हुई। चार लड़कों में से एक को कुछ हलचल महसूस हुई। 

एक लड़का बोला लगता है कि बाहर कोई खड़ा है

अरे तेरा वहम होगा तुझे भी भूत-प्रेत दिखाई देने लगे है क्या?” दूसरे लड़के ने कहा।

नहीं मैं जाकर देखता हूं.” जिसे हलचल महसूस हुई वो लड़का बोला।

रज्जो ने  हवेली के बाहर रखी अपनी साइकिल उठाई और वहां से निकल पड़ी, हवेली के बाहर घनघोर अंधेरा था तो कोई रज्जों को देख ना सका लेकिन लड़के को थोड़ी  दूर से जाती हूं साइकिल दिखी लेकिन वो रज्जो को पहचान नहीं पाया।

उसने अंदर जाकर अपने दोस्तों से कहा मुझे लगता है कि कोई यहां आया ज़रुर था.”

अरे शहर से गांव की तरफ जाने वाला रास्ता यहीं से गुजरता है तो कोई शहर से वापस लौट रहा होगा। रोज ही ऐसा होता है लेकिन हमने जो लोगों के दिमाग में भ्रम भरा है तो कोई यहां आने की हिम्मत तक नहीं करेगा तू चुपचाप बैठ यहां.”

साइकिल पर सवार रज्जो ने आधा रास्ता तय कर लिया था, वो घबरा गई थी और सोचने लगी सचमुच उसे धनिया की चेतावनी सुन लेनी चाहिए थी अगर कोई उसे देख लेता तो उसकी तो जान पर ही बन आती।

कुछ ही देर में उसका घर भी आ गया उसने धीरे से कुंडी खोली और अपनी मां के बाजू में जाकर सो गई और सोचने लगी खामखां क्यों लोग भूत और प्रेतों को बदनाम करते रहते है मृत से ज्यादा ख़तरनाक तो जिंदा इंसान ही होता है। ये राज उसने अपने दिल में ही दफ़न रखा क्योंकि उसके गांव और परिवार वाले उसकी हिम्मत की दाद देने के बजाए उसे ही खरी खोटी सुनाने लगते।

शिल्पा रोंघे

 © सर्वाधिकार सुरक्षित, कहानी के सभी पात्र काल्पनिक है जिसका जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है।


व्यंग्य-आदर्श महिला बनने की ट्रेनिंग

  नीरज ने सोचा कि शहर की लड़कियों को आदर्श कैसे बनाया जाए, इसकी ट्रेनिंग दी जाए, तो कई लड़कियों की रुचि उसमें जगी। शहर की कई लड़कियों ने...