रविवार, 4 जुलाई 2021

संस्कार कपड़े तय नहीं करते है।


 

रीमा आज अपने रिश्तेदार की शादी में पहुंची तभी वहां उसे कई महिलाओं ने घेर लिया।

अरे ये क्या इतना चटखदार सलवार सूट पहनकर आ गई, अगर साड़ी पहन लेती तो कितना अच्छा होता।’’

कई विवाह योग्य लड़के भी आते है यहां, तुम्हारा परिचय करा देते उनके माता पिता से। एक महिला ने कहा।

तभी एक लड़के  की धीमी सी आवाज आती है ऐसी लड़कियां मैरिज मटेरियल नहीं होती है। इनके मां-बाप को बाहर पढ़ने भेजना ही नहीं चाहिए, देखो ना कुछ साल महानगर में क्या रह ली रहने का ढंग ही बदल गया। लड़की तो वो अच्छी होती है जो घर के कामकाज पर ध्यान दें और सबकी खुशियों का ध्यान रखे। यही एक औरत का कर्तव्य है।’’

रीमा ने उसकी बातों को अनसुना कर दिया और आगे बढ़ गई, तभी उसकी मां ने कहा

देखो तुम्हारी उम्र की सभी लड़कियां साड़ी पहनकर आई है, तुम भी पहन लेती तो कितना अच्छा होता।’’

“हां मुझे साड़ियां पहनने का शौक है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि खुद को संस्कारी साबित करने के लिए मैं साड़ी पहनूं, फंक्शन में कई घंटे बीत जाते है तो इतनी गर्मी में साड़ी में असहज महसूस होता है। मुझे जिसे पसंद करना होगा वो जीन्स या स्कर्ट पहनकर रहूं तब भी कर लेगा, सच्चा प्यार शर्तों में नहीं होता है।’’

रीमा की मां ने कहा तुम्हे जो ठीक लगे वो करो लेकिन बाद में मुझे जिम्मेदार मत ठहराना

हां मां मैं इतनी समझदार हूं कि जो भी मेरे जीवन में होता है उसकी जिम्मेदारी मैं खुद लूं, ना कि किसी और को दोष दूं।’’ रीमा ने कहा।

शिल्पा रोंघे

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