शनिवार, 22 मई 2021

सुनैना

 वो देख नहीं सकती थी लेकिन अहसास पढ़ सकती थी, पांच साल तक उसकी आंखों की रोशनी ठीक ठाक थी, लेकिन एक बीमारी ने उसकी आंखों की रोशनी छीन ली। तभी उसका सार्थक सा नाम सुनैना उसके माता पिता को ना जाने क्यों अर्थहीन लगने लगा। कभी वो अपने भाग्य को कोसते तो कभी सुनैना की किस्मत को तो कभी कभी सुनैना को ही।

  सुनैना ने ब्रेल लिपी में ही संगीत और गायन की पढ़ाई पूरी कर ली। उसकी मधुर आवाज के चर्चे हर कहीं थे।

ज्यादातर लोग उससे सहानुभूति जताते थे तो कुछ लोग उपहास भी उड़ा देते थे जो दूध में पड़े जहर की तरह काम कर जाता था। सारी प्रशंसा और सहानुभूति एक तरफ रह जाती थी। सुनैना अपने काम खुद ही कर लेती थी, उसका दिमाग आंखों वालो से भी ज्यादा तेज था।

पड़ोस में रहने वाली राधिका हमेशा अपने माता पिता से कहती थी कि वो अपने जीवन से खुश नहीं है तो उसके माता-पिता सुनैना का उदाहरण ही दिया करते थे कि जब वो ख़ुश रह सकती है तो वो क्यों नहीं, दअरसल राधिका कई बार सिविल सर्विसेज का एक्ज़ाम दे चुकी थी लेकिन उसका चयन नहीं हो रहा था।

एक दिन राधिका के पिता का निधन लंबी बीमारी से हो गया उन्होंने मरने से पहले अपनी आंखें डोनेट करने का मन बनाया था जो कि सुनैना को डोनेट कर दी गई।

 

सुनैना और राधिका बहुत अच्छी दोस्त थी राधिका ही उसे कहानियां पढ़कर सुनाया करती थी।

जैसे ही राधिका एक दिन सुनैना से मिलने गई तो सुनैना की आंखों से आंसू छलक पड़े और उसने राधिका को गले लगा लिया जैसे कि बरसो से जमा पूंजी की तरह रखा हुआ दर्द का समुंदर एक ही बार में छलक पड़ा हो।

तभी राधिका को अपनी गलती का अहसास हुआ कि ख़ुश रहने के लिए किसी सफलता का इंतज़ार नहीं करना चाहिए, हमारे पास जो है उसका आभार व्यक्त करके हम जीवन के हर पल का आनंद ले सकते है।

शिल्पा रोंघे


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

व्यंग्य-आदर्श महिला बनने की ट्रेनिंग

  नीरज ने सोचा कि शहर की लड़कियों को आदर्श कैसे बनाया जाए, इसकी ट्रेनिंग दी जाए, तो कई लड़कियों की रुचि उसमें जगी। शहर की कई लड़कियों ने...