“चकाचौंध” पत्रिका अपने प्रकाशन के चार साल पूरे
कर चुकी थी, किसी को उम्मीद भी नहीं थी कि इस पत्रिका की बिक्री इतनी बढ़ जाएगी,
अब ऐसे में सभी सदस्यों को मीटिंग में बुलाया गया और उनके योगदान के लिए बधाई दी
गई। तभी मीटिंग में एक व्यक्ति ने पत्रिका के मालिक से कहा हम चाहते है कि अब
हमारी पत्रिका की ब्रिकी काफी बढ़ चुकी है ऐसे में उसमें कुछ बदलाव किए जाए जिससे
ये सिर्फ युवा वर्ग तक सीमित ना रहकर एक पारिवारिक पत्रिका बन जाए।
मालिक ने कहा आप सुझाव दे सकते है तब उस सदस्य
ने कहा कि “अब पत्रिका हम में बोल्ड तस्वीरे नहीं
लगाना चाहते है जो कि सिर्फ ध्यान आकर्षित करने का काम करती हो, बल्कि स्वस्थ और
सपूंर्ण परिवार के मनोरंजन देने वाली पत्रिका के रुप में इसकी पहचान बनाना चाहते
है, साथ ही जो प्रोडक्ट समाज के स्वास्थ के लिए अच्छा नहीं उसके विज्ञापन भी छापने
से गुरेज़ करेंगे और सिर्फ मैं ही नहीं सभी सदस्य यही चाहते है”
तब मालिक ने कहा ये प्रयोग हम पत्रिका के
शुरुआती दिनों में कर चुके है तब पत्रिका कि बिक्री काफी कम थी जब उसके कंटेट को
थोड़ा मसालेदार बनाया गया तब जाकर पाठकों ने उसे पसंद किया, खैर मुझे कोई समस्या
नहीं है लेकिन ऐसा करने से मुनाफ़े में कमी हो सकती है हो सकता है कि जिस
इन्क्रीमेंट का आप इंतज़ार कर रहे थे वो आपको ना मिले और घाटा होने पर स्टाफ कम
करना पड़े ये नौबत भी आ सकती है। क्या आप इसके लिए तैयार है मैं आप सबको को सोचने
के लिए कल तक का वक्त देता हूं सोचकर मुझे बताएं।
कल तक जो सदस्य एकता के साथ खड़े थे मालिक के
तर्क सुनकर उनके होश उड़ गए और उन्होंने अपनी मांग से पीछे हटने का फैसला किया कुछ
ने तर्क दिया कि बिना पैसों के उनका घर बार कैसे चलेगा, बच्चों की फीस का क्या
होगा ?
केवल दो युवा सदस्य ही
अपनी मांग पर अड़े रहे और अंत में इस्तीफा दे दिया।
उनके जाते ही ऑफिस के
सदस्य अलग- अलग सुर गा रहे थे, उनमें से एक सदस्य ने कहा “ अभी उम्र कम
है इनकी आटे दाल के भाव जब मालूम होंगे तो सारे आदर्श धरे रह जाएंगे”
तभी ऑफिस की सबसे
बुजुर्ग सदस्य ने कहा "चलो किसी ने तो हिम्मत की चकाचौंध से दूर रहने की वरना हम तो
जिम्मेदारियों के बोझ तले अपनी राय रखना ही भूल गए थे, खिड़की से उन दो सदस्यों को
जाते देखकर उन्होंने कहा कि मैं भी शायद यहां
ज्यादा दिन काम नहीं कर पाउंगी"
एक महीने बाद “चकाचौंध” पत्रिका के ऑफिस
में न्यू ईयर पार्टी हो रही थी, अब दस में से तीन सदस्य जा चुके थे, जिनके जाने के बाद भी “चकाचौंध” दिनों दिन
लोकप्रिय हो रही थी और उसकी बिक्री भी बढ़ रही थी, जल्द ही इस चकाचौंध में पुराने तीन
साथियों को भुला दिया गया, कुछ इस तरह कि वो कभी इसका हिस्सा भी नहीं थे। चारों तरफ बस
हैप्पी न्यू ईयर की धुन बज रही थी, और लोग एक दूसरे को इन्क्रीमेंट की बधाई दे रहे
थे।
नोट- यह कथा पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति व्यक्ति, घटना या स्थान से कोई संबध नहीं है। सर्वाधिकार सुरक्षित
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