मानसी को दिल्ली आए हुए 6 महीने ही हुए थे, अभी उसके पति का मुंबई से दिल्ली ट्रांसफर हुआ था, जो कि एक मल्टीनेशनल कंपनी में मैनेजर था। मानसी पूरा दिन घर पर अकेला महसूस करती थी, हालांकी खाना वो खुद ही पकाती थी फिर भी बचे हुए वक्त में क्या करे ? ये उसे समझ में नहीं आता था, ख़ासकर जिस लड़की को टीवी देखना पसंद ना हो। जिस अपार्टमेंट में वो रहती थी उसके सामने वाले फ्लैट में ही दीपशिखा रहती थी जो कि एक अखबार में काम करती थी, उससे उसकी गहरी दोस्ती हो गई थी।
एक
दिन दीपशिखा उसे शाम को बाहर अपने दोस्तों के साथ जाते हुए दिखी, तो उसने पूछा कि
कहां जा रही हो तुम तो उसने कहा कि “मैं डिस्को जा रही हूं।’’
“मुझे
भी साथ लेकर चलना कभी’’ मानसी ने कहा।
“लेकिन
तुम्हारे पति से पूछा क्या
?’’ दीपशिखा ने कहा।
“वो तो नाइट शिफ्ट कर रहे है तो सुबह
आते हैं।’’ मानसी ने जवाब दिया ।
“चलो अगली बार तुम्हें ले जाएंगे उससे
पहले हम शॉपिंग पर जाएंगे साड़ी पहनकर जाओगी क्या ?’’
“ओके संडे को चलेंगे शॉपिंग पर” दीपशिखा ने कहा।
“संडे नहीं फ्राईडे को चलेंगे, उनको
ज़रुरत से ज्यादा खर्चा पसंद नहीं है” मानसी
ने जवाब दिया ।
“ओके बाय” कहते हुए दीपशिखा अपने दोस्तों के साथ
ऑटो में सवार होकर चली गई।
मानसी
25 साल की थी जब उसकी शादी हुई थी और उसके पति की आयु 30 साल थी।
दीपिशिखा
का मायका लातूर में था। तो नए शहर में तालमेल बिठाने में उसे थोड़ी परेशानी हो रही
थी।
यहां
छोटे शहर की तरह लोगों को आपस में ज्यादा घुलने-मिलने की आदत भी नहीं थी, लेकिन
उसकी दीपिशिखा से अच्छी दोस्ती हो गई थी जिससे वो टूटी -फूटी हिंदी में बात कर लेती
थी।
आखिर
फ्राइडे का दिन आ ही गया और मानसी ने दीपशिखा के साथ ढेर सारी शॉपिंग कर डाली।
ढेर
सारे वेस्टर्न कपड़े खरीद डाले।
अब
तो जैसे मानसी हर हफ़्ते ही दीपिशिखा के साथ कभी शॉपिंग तो महीने में एकाध बार
डिस्को जाने लगी।
एक
दिन उसके पति सचिन की रात की शिफ्ट भी खत्म हो गई लेकिन ख़ुश होने के बजाए वो उदास
रहने लगा
तो
मानसी ने पूछा “आप उदास क्यों रहते हो?”
तो
उसने कहा “अगले महीने मेरी नौकरी जाने वाली है,
अभी मैंने बैंक अकाउंट चेक किया, बैलेंस काफी कम दिख रहा है हमारे फ्लैट का लोन भी
तो चल रहा है इतना खर्चा क्यों बढ़ रहा है क्या वजह है इसकी ?”
“इस महीने मैंने थोड़ी शॉपिंग कर ली और
दो तीन शादियां भी आने वाली है रिश्तेदारी में, तो
गिफ़्ट भी खरीदना पड़े।’’
“आप ऐसा करो ना कोई छोटी मोटी जॉब कर
लो।’’ मानसी ने कहा।
“इतना पढ़-लिखकर ?” सचिन ने कहा।
“क्यों ना शुरुआत तुम्ही से हो जाए।’’ सचिन ने फिर कहा।
“मुझे कौन रखेगा ? यहां पराए शहर में नौकरी पर ?” मानसी ने कहा।
अगले
दिन सुबह सचिन के ऑफिस जाने के बाद मानसी दीपशिखा से मिली।
अरे
क्या “तुम मुझे कोई जॉब बताओगी ?” मानसी ने कहा।
“हां तुमने साहित्य की पढ़ाई की है ना।’’ दीपशिखा ने कहा।
“हिंदी या अंग्रेजी कौन सी भाषा जानती
हो तुम ?” दीपशिखा ने कहा
मानसी
को दिल्ली आए हुए 6 महीने ही हुए थे, अभी उसके पति का मुंबई से दिल्ली ट्रांसफर
हुआ था, जो कि एक मल्टीनेशनल कंपनी में मैनेजर था। मानसी पूरा दिन घर पर अकेला
महसूस करती थी, हालांकी खाना वो खुद ही पकाती थी फिर भी बचे हुए वक्त में क्या करे
? ये उसे समझ में नहीं आता था, ख़ासकर जिस लड़की को टीवी देखना पसंद ना हो। जिस
अपार्टमेंट में वो रहती थी उसके सामने वाले फ्लैट में ही दीपशिखा रहती थी जो कि एक
अखबार में काम करती थी, उससे उसकी गहरी दोस्ती हो गई थी।
एक
दिन दीपशिखा उसे शाम को बाहर अपने दोस्तों के साथ जाते हुए दिखी, तो उसने पूछा कि
कहां जा रही हो तुम तो उसने कहा कि “मैं डिस्को जा रही हूं।’’
“मुझे
भी साथ लेकर चलना कभी’’ मानसी ने कहा।
“लेकिन
तुम्हारे पति से पूछा क्या
?’’ दीपशिखा ने कहा।
“वो तो नाइट शिफ्ट कर रहे है तो सुबह
आते हैं।’’ मानसी ने जवाब दिया ।
“चलो अगली बार तुम्हें ले जाएंगे उससे
पहले हम शॉपिंग पर जाएंगे साड़ी पहनकर जाओगी क्या ?’’
“ओके संडे को चलेंगे शॉपिंग पर” दीपशिखा ने कहा।
“संडे नहीं फ्राईडे को चलेगें, उनको
ज़रुरत से ज्यादा खर्चा पसंद नहीं है” मानसी
ने जवाब दिया ।
“ओके बाय” कहते हुए दीपशिखा अपने दोस्तों के साथ
ऑटो में सवार होकर चली गई।
मानसी
25 साल की थी जब उसकी शादी हुई थी और उसके पति की आयु 30 साल थी।
दीपिशिखा
का मायका लातूर में था। तो नए शहर में तालमेल बिठाने में उसे थोड़ी परेशानी हो रही
थी।
यहां
छोटे शहर की तरह लोगों को आपस में ज्यादा घुलने मिलने की आदत भी नहीं थी, लेकिन
उसकी दीपिशिखा से अच्छी दोस्ती हो गई थी जिससे वो टूटी फूटी हिंदी में बात कर लेती
थी।
आखिर
फ्राइडे का दिन आ ही गया और मानसी ने दीपशिखा के साथ ढेर सारी शॉपिंग कर डाली।
ढेर
सारे वेस्टर्न कपड़े खरीद डाले।
अब
तो जैसे मानसी हर हफ़्ते ही दीपिशिखा के साथ कभी शॉपिंग तो महीने में एकाध बार
डिस्को जाने लगी।
एक
दिन उसके पति सचिन की रात की शिफ्ट भी खत्म हो गई लेकिन ख़ुश होने के बजाए वो उदास
रहने लगा
तो
मानसी ने पूछा “आप उदास क्यों रहते हो?”
तो
उसने कहा “अगले महीने मेरी नौकरी जाने वाली है,
अभी मैंने बैंक अकाउंट चेक किया बैलेंस काफी कम दिख रहा है हमारे फ्लैट का लोन भी
तो चल रहा है इतना खर्चा क्यों बढ़ रहा है क्या वजह है इसकी ?”
“इस महीने मैंने थोड़ी शॉपिंग कर ली और
दो तीन शादियां भी आने वाली है रिश्तेदारी में, तो
गिफ़्ट भी खरीदना पड़े।’’
“आप ऐसा करो ना कोई छोटी मोटी जॉब कर
लो।’’ मानसी ने कहा।
“इतना पढ़ लिखकर ?” सचिन ने कहा।
“क्यों ना शुरुआत तुम्ही से हो जाए।’’ सचिन ने फिर कहा।
“मुझे कौन रखेगा ? यहां पराए शहर में नौकरी पर ?” मानसी ने कहा।
अगले
दिन सुबह सचिन के ऑफिस जाने के बाद मानसी दीपशिखा से मिली।
अरे
क्या “तुम मुझे कोई जॉब बताओगी ?” मानसी ने कहा।
“हां तुमने साहित्य की पढ़ाई की है ना।’’ दीपशिखा ने कहा।
“हिंदी या अंग्रेजी कौन सी भाषा जानती हो तुम ?” दीपशिखा ने कहा।
“सिर्फ मराठी” मानसी ने कहा ।
“ओह तो यहां काम मिलना थोड़ा मुश्किल ही
है” दीपशिखा ने कहा।
“फिर
भी मैं कोशिश करुंगी, मेरे अखबार की एच आर मैनेजर है अश्विनी देशमुख तो मैं उनसे
तुम्हारें बारे में बात करुंगी।’’ दीपशिखा ने कहा।
एक
दिन अश्विनी का मानसी को कॉल आया।
“यहां मेरी दोस्त का एक मराठी अखबार है जिसका प्रसार बहुत ही कम है यहां तो उनकी आमदनी भी नहीं है, तो सैलरी थोड़ी कम होगी तो काम करना चाहोगी क्या ?”
मानसी ने सोचा शुरुआत तो कर ली जाए अगर मायके में बताया तो कहेंगे कि सरकारी नौकरी वाले से शादी की होती तो ये दिन देखने को ना मिलते, बड़े शहर में शादी की क्या ज़रुरत थी, अपने शहर में क्या लड़के कम है, वगैरह-वगैरह, अब कई रिश्ते आए थे उसके लिए जो उसके शहर के ही थे लेकिन उसने सचिन को ही चुना, घर के लोगों ने सोचा दूर के शहर का पसंद है तो वही सही।
एक दिन दीपशिखा ने सुबह उठते ही अपना नया ऑफिस ज्वाइन कर लिया।
उसे
जॉब करते-करते 6 महीने हो गए थे, उसके पति की भी नौकरी कहीं और लग गई।
एक
दिन उसके पति ने कहा कि वो अब नौकरी छोड़ सकती है और सिर्फ घर संभाले क्योंकि उसे
भी घर के काम में हाथ बटाना पड़ रहा था।
तभी
उसने कहां “नहीं अब मुझे अपनी मंजिल मिल चुकी है वो कोई कठपुतली नहीं है कि जब
चाहे नौकरी करे और छोड़ दे।’’
उसकी
जिद के आगे सचिन को भी झुकना पड़ा।
सच
तो है एक औरत के लिए दुनिया में अपना स्थान बनाना आसान काम नहीं होता लेकिन कहते
है कि जहां चाह वहां राह मिल ही जाती है
मुश्किल से ही सही।
शिल्पा
रोंघे
नोट- यह कथा पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति व्यक्ति, घटना या स्थान से कोई संबध नहीं है। सर्वाधिकार सुरक्षित
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