तभी पड़ोस की चंदा
काकी भी आ पहुंची और बोली “अरे
इतनी तपती धूप में कहां घूम रही हो तुम दोनों, जाओ घर जाकर चुल्हा चौका संभालों
वहीं शोभा देता है तुम लोगों को, ये आवारागर्दी तो लड़कों का काम हैं।’’
“क्या आप भी, थोड़ा घूम
फिर लिए तो कौन सा गुनाह कर लिए? ’’ सीमा ने जवाब दिया।
“अरे शादी -ब्याह कर
लो, कौन सा आजकल के मर्द मारते -पीटते है, पढ़ लिखकर बहुत आगे जो बढ़ गई हो तुम
लोग। हमारे जमाने में तो 16 साल पूरे होते ही हाथ पीले हो जाते थे, ना हां बोलने की
हक था ना मना करने का, खैर छोड़ों तुम
लोगों को समझाना बेकार है।’’ ये कहते हुए काकी वहां से निकल गई।
हैरान -परेशान सीमा ने
अपनी सहेली सुधा से कहा “अरे पता नहीं क्यों ये काकी हम पर सारी नाराजगी निकाल गई।’’
“अरे काका ने कुछ कह दिया होगा, तो हम पर भड़ास निकालकर मन हल्का कर रहीं है और क्या, चल छोड़, देख वो मनोज अपने दोस्त के साथ पंजा लड़ा रहा है क्या तू उसे हरा सकती है ? सुधा ने पूछा।
“क्यों नहीं” सीमा ने कहा।
“कहीं तेरी
पतली कलाई में मोच ना आ जाए, ये देख लेना।” सुधा ने उसे
चेताया।
मनोज
मानवाधिकार में पोस्ट ग्रेजुएशन कर रहा था, गर्मियों की छुट्टियों में गांव आया था।
तभी सीमा को देखकर
बोला “कैसी हो तुम ?”
“अच्छी हूं क्या तुम मुझसे पंजा लड़ाओगे ?’’ सीमा ने कहा।
“हां बिल्कुल
क्यों नहीं।’’ मनोज ने जवाब दिया।
जैसे ही सीमा
मनोज से पंजा लड़ाने बैठी तो मनोज का हाथ उसके हाथ पर भारी पड़ने लगा, उसे लगा
उसका हारना तो तय ही है तभी मनोज ने अपना हाथ थोड़ा ढीला छोड़ दिया। बाजी पलट गई
और सीमा जीत गई । तभी सीमा ने खुशी से कहा कि “मैं जीत गई।”
सुधा ने कहा “अरे
वाह तुने तो कमाल ही कर दिया।”
तभी सीमा का
छोटा भाई वहां आ पहुंचा बोला “दीदी घर चलो, अम्मा बुला रही है।”
तभी सीमा अपने
दुप्पटें में बंधे बैर को संभालते हुए घर की ओर चल दी।
मनोज के दोस्त
सतीश ने कहा “अरे तू क्यों जान बुझकर हार गया।’’
मनोज ने कहा “असली
मर्द वो थोड़े ही होता है जो हर बार जीते, कभी औरत पर हाथ उठाकर, हर आती-जाती
महिला को गलत ढंग से घूरकर या उनके अधिकारों का दमन कर खुद को बड़ा साबित करे। अरे
अगर मेरे हारने से एक औरत को ख़ुशी मिली है तो वही सही। पढ़े लिखे लोगों की कोई
कमी नहीं हमारे देश में, लेकिन असली तालीम तो बिना औरत की बराबरी की बात कहे,
अधूरी ही है।’’
सतीश ने कहा “मान
गए, बात में दम तो है तुम्हारी काश ये हर कोई समझता तो कितना अच्छा होता।’’
शिल्पा रोंघे
नोट- यह कथा पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति व्यक्ति, घटना या स्थान से कोई संबध नहीं है। सर्वाधिकार सुरक्षित
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