बुधवार, 5 अगस्त 2020

वीणावादक

काफी सालों पुरानी बात है उत्कर्ष नगर में एक 20 वर्षीय वीणावादक के काफी चर्चे थे। वैसे तो वो एक मिट्टी से बने छोटे घर में रहता था बहुत ज्यादा आय नहीं थी उसकी, लेकिन काफी प्रतिभाशाली था, इसी वजह इसे कई धनाड्य घरों से वीणावादन के आमंत्रण मिला करते थे तो उसका गुजारा चल जाया करता था। उसी नगर में एक 40 विधवा चंदा रहती थी जिसके पास काफी धन संपत्ती थी लेकिन उम्र के 20 वें साल में ही उसके पति मृत्यु हो गई थी उसकी कोई संतान भी नहीं थी।

साज सिंगार विमुख हो चुकी थी वो फिर भी काफी सुंदर जान पड़ती थी। सब कुछ होते हुए भी उसे काफी एकाकी महसूस होता था।

एक दिन उसने सोचा कि कुछ मनोरंजन का साधन ढूंढा जाए। तभी उसके घर आने वाली नौकरानी ने सूचना दी कि नगर में कुछ माह पहले ही एक वीणावादक आया है जो जिसकी वीणा की तान सुनकर बर्फ की शिला तेजी से पिघलने लगती चाहे सर्दी का ही मौसम क्यों ना हो, सूरज की रोशनी हो या ना हो, यहां तक कि धातु तक पिघल चुका है बिना ऊष्मा के ।

तभी चंदा बोली अच्छा तो मैं भी उससे भेंट करना चाहूंगी.”

कुछ दिनों बाद वो वादक चंदा के घर आ पहुंचा तब चंदा बोली मैं तुम्हें मुंहमांगी राशी दूंगी अगर तुम मुझे पिघला कर दिखा दो.

तभी वादक काफी  मग्न होकर वीणा बजाने लगा थोड़ी देर अचानक ही वीणावादक रुक गया और बोला मेरा काम खत्म हो गया है.”

तभी चंदा बोली तुम कहां मुझे पिघला पाए हो? जैसे कि तुम दावा कर रहे थे.”

तभी वीणावादक बोला आसुंओं से भीगा आपका चेहरा आपके पिघलने की ओर ही संकेत कर रहा है.”

जिस दुख ने आपको एक शिला बना दिया वो आज पिघल कर आंसू बन चुका है.”

शायद ये सालों बाद आपके साथ हुआ हो अगर मैं गलत ना हूं तो ?”

चंदा के चेहरे एक अलग ही मुस्कान छा चुकी थी और उसने वीणावादक की बात से सहमती जता दी।

तभी चंदा ने उसे अपने हाथ से अलमारी में रखा कंगन निकालकर दिया जो उसने वर्षों से संभालकर रखा था।

तभी वीणावादक ने कहा कि आज एक इंसान को पिघलते हुए देखना ही मेरे लिए सबसे बड़ा पुरुस्कार है ये कहकर वो कंगन वापस चंदा के हाथ में रखकर वहां से निकल गया.”

शिल्पा रोंघे

 

 © सर्वाधिकार सुरक्षित, कहानी के सभी पात्र काल्पनिक है जिसका जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। 

 

 


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