बुधवार, 9 जून 2021

किताब का हक


 

मनीषा का ब्याह स्कूल पास होते ही हो गया था, वो पढ़ने में बहुत तेज थी, लेकिन उसकी सुनता कौन? 12 वीं पास होते ही उसके हाथ पीले कर दिये गए, वजह थी कि उसके गांव में कोई कॉलेज नहीं था, उसकी सभी दूर की बहनें शहर में रहती थी, तो उससे ज्यादा पढ़-लिख गई। अब उसकी उम्र 32 साल हो चुकी थी। बच्चें भी बड़े हो चुके थे।

खेती-बाड़ी वाले ससुराल में होने की वजह से वो संयुक्त परिवार में रहती थी, एक दिन उसकी भांजी रिया का बारहवी का रिजल्ट आया तो वो बहुत खुश थी कि अब वो शहर जाकर आगे की पढ़ाई करेगी।

तभी मनीषा ने उसे बधाई दी और कहा कि चलो तुम अब घर का नाम रोशन करोगी, जो मैं नहीं कर पाई वो अब तुम कर पाओगी।’’

रिया ने कहा आप अभी भी बहुत कुछ कर सकती हो, देर नहीं हुई है।’’

मनीषा ने कहा अब मुझे घर-गृहस्थी से फ़ुरसत मिले तब तो

आप भी मेरे साथ चलो, आगे की पढ़ाई पूरी करने के लिए। रिया ने कहा।

अरे नहीं अब ये संभव नहीं है।’’ मनीषा ने उत्तर दिया।

तभी मनीषा के पति का वहां आना हुआ क्या संभव नहीं है ?”

देखो जिद पर बैठी है रिया कि मुझे भी आगे की पढ़ाई करना चाहिए। शहर चलने को कह रही है कैसे होगा।’’

सही तो कह रही है तुम्हारे जैसी प्रतिभा तो मुझ में भी नहीं है, ये तो मैं भी कहना चाहता था, मुझे लगा कि शायद तुम्हे अच्छा ना लगे।’’

बच्चों की चिंता मत करो मैं उन्हें संभाल लूंगा, आखिर वो मेरे भी तो बच्चे है।

"बस तुम्हें हिम्मत जुटानी पड़ेगी और आगे की सफ़र तय करना होगा।"

तभी मनीषा ने कहा हां सही तो है पढ़ने-लिखने की तय उम्र थोड़े ही ना होती है वो तो कभी की जा सकती है। बस हौंसला होना चाहिए।’’

शिल्पा रोंघे

 

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