बुधवार, 8 जून 2022

व्यंग्य-आदर्श महिला बनने की ट्रेनिंग


 नीरज ने सोचा कि शहर की लड़कियों को आदर्श कैसे बनाया जाए, इसकी ट्रेनिंग दी जाए, तो कई लड़कियों की रुचि उसमें जगी। शहर की कई लड़कियों ने उसमें दाखिला लिया।

नीरज ने एक-एक करके सबकी पसंद पूछी “तुम कैसे लड़के से शादी करना चाहती हो।’’
सबसे पहले कमला ने कहा “कुछ नहीं लड़का अच्छा होना चाहिए उसका अतीत मायने नहीं रखता, मुझे नहीं जानना उस इंसान से जुड़ी महिला के बारे में ,क्योंकि वो उसके अतीत की बात है, ना कि वर्तमान की। ’’
नीरज ने कहा “पैसे वाला हो, तो उसका अतीत भी मायने नहीं रखता, मतलब तुम लालची महिला हो।’’
फिर विमला से उसकी पसंद पूछी तो जवाब मिला “एकदम सज्जन पुरुष होना चाहिए।’’
नीरज ने कहा “मतलब तुम जजमेंटल हो, अरे, इससे तुम्हें क्या मतलब, सुधार देना उसे तुम शादी के बाद।’’
फिर रेखा ने उत्तर दिया “स्वाभिमानी होना चाहिए मतलब दहेज वगैरह ना ले।’’
.नीरज ने कहा “तुम्हें लगता है बिना इन्वेस्टमेंट किये तुम्हें मुनाफ़ा मिल जाए।’’
फिर गीता ने जवाब दिया “मैं अपने माता पिता की पसंद से शादी करुंगी।’’
नीरज ने कहा “मतलब आप जातिवादी और भाषावादी है।”
रुपा ने कहा “नहीं, मैं तो लव मैरिज करुंगी, अपनी पसंद से चुनाव करुंगी।’’
नीरज ने कहा “अरे जो अपने मां बाप की ना हुई वो किसी और की क्या होगी?”
शीला ने कहा “मेरा पति सुंदर होना चाहिए।”
नीरज ने कहा “मतलब आप आकर्षण के आधार पर शादी करना चाहती है ना कि सच्चे प्रेम के आधार पर।’’
मीता ने जवाब दिया “सुंदरता मायने नहीं रखती वो बुद्धिमान होना चाहिए।’’
नीरज ने कहा “अगर पढ़ा लिखा हो तो कैसा दिखता है ये मायने नहीं रखता। मतलब तुम अंहकार के आधार पर पति चुनना चाहती हो।’’
मधुमिता ने कहा “मैं तो एक साधारण
लड़के से शादी करुंगी।’’
“मतलब तुम्हें पति नहीं गुलाम चाहिए, जिस पर तुम अपना रौब झाड़ सको।’’
रुचि ने कहा “मैं हाउसवाइफ़ बनना पसंद करुंगी यानि घर की देखरेख करना पसंद करुंगी।”
“यानि मुफ़्त की रोटियां खाना पसंद करोगी।” नीरज ने कहा
रुचि ने कहा “लेकिन घर के काम में भी पूरा दिन चला जाता है।’’
“तो क्या हुआ ?’’ नीरज ने जवाब दिया।
प्रेरणा ने कहा “घर संभालना मेरे बस की बात नहीं, मैं तो बस करियर पर ध्यान दूंगी।”
“मतलब होटल के खाने पर पैसा बर्बाद करो और तुम्हारे बच्चें रहेंगे झूला घर में।’’ नीरज ने कहा ।
थोड़ी देर में क्लॉस खत्म हो गई। नीरज जा चुका था, लड़कियां भी बस क्लॉस से निकलने की तैयारी में थी, तभी वहां गुलाबो आई जो सबको चाय दे रही थी,
उसने कहा '' मैंने इनसे ही ट्रेनिंग ली और चुप रहना सीखा।
लड़कियों ने कहा “कुछ फ़ायदा हुआ ?’’
“हां चुपचाप सुबह उठकर घर के सारे काम निपटा लेती हूं महीने की पूरी कमाई पति को दे देती हूं, वो कभी-कभी शराब पीकर पीटता भी है, वो अपनी कमाई दूसरी औरतों और शराब पर लूटा देता है फिर भी कुछ नहीं कहती हूं। इनकी सलाह सुनकर सोशल मीडिया का उपयोग बंद कर दी हूं। " लेकिन नीरज जी है कहां ये लड़कियों ने पूछा ’’
गुलाबो ने कहा “सोशल मीडिया पर लाईव दे रहे है कि आदर्श नारी कैसे बना जाए।’’
“क्या तुम्हारी मदद की उन्होंने’’ लड़कियों ने फिर पूछा
जवाब मिला “अरे मुफ़्त की सलाह देते है ये क्या कम है”

एक लड़की ने कहा ‘मत रहो यहां पर इससे पहले कि ये अपनी दोगली पितृसत्तामक बातों से तुम्हारा सोचने का तरीका बदल दे। चाहो तो हमारे स्कूल में आ जाओं, वहां छोटे बच्चों को संभालने के लिए महिला की ज़रुरत हैं, वहां तुम्हारें बारे में अपने टीचर्स को बता देंगे।’’

तभी लड़कियां आपस में बात करने लगी
इस वर्कशॉप से हमारी आंखें उतनी नहीं खु़ली नहीं जितनी की गुलाबो की बातों से, सच में अनुभव कागजी बातों से ज्यादा मायने रखता है।
शिल्पा रोंघे

 © सर्वाधिकार सुरक्षितकहानी के सभी पात्र काल्पनिक है जिसका जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है।

 

 

 

सोमवार, 23 अगस्त 2021

पसंद अपनी-अपनी


 

महेश और सुरेश एक ही क्लॉस में पढ़ा करते थे। महेश साधारण कद काठी का आकर्षक लड़का था, जो केवल अपनी पढ़ाई पर ही ध्यान देता था।

वहीं सुरेश एक ज़िंदादिल लड़का था जो हर वक्त पार्टी, तो कभी सिनेमा देखने में व्यस्त रहता था वो क्लॉस का सबसे सुंदर लड़का था, जिसको कई लड़कियां पसंद करती थी। तो वही महेश का स्वभाव शर्मिला था, तो उसकी बहुत ही कम लड़कियों से दोस्ती हो पाती थी और वो ये सोचता था कि ये वक्त करियर बनाने का है तो प्यार से जितना दूर रहा जाए उतना अच्छा है, वो तो बाद में भी किया जा सकता है। तो वहीं सुरेश कभी- कभार ही कॉलेज आता था, उसे लगा वो सबसे खूबसूरत लड़कों में से एक है तो यही काफी है।

कई साल बीत गए एक दिन महेश सुरेश से मिलने गया तो पता चला कि महेश एक मशहूर साइंटिस्ट बन चुका है

तो वहीं सुरेश एक 9 से 5 वाली साधारण नौकरी कर रहा था जिससे वो ख़ुश नहीं था। उसने देखा कि महेश की शादी तो एक बहुत सुंदर  और योग्य लड़की से हो गई और उसे अभी तक अपने योग्य लड़की ही नहीं मिली।

उसे महेश के घर जाकर बहुत अच्छा लगा उसकी पत्नी ने भी उसको बहुत अच्छा खाना बनाकर खिलाया।

जब वो अपने घर पहुंचा तो उसने अपनी बहन से कहा दीदी देखो महेश को एक अच्छी लड़की मिल गई, लेकिन मुझे क्यों नहीं ? मुझ पर तो कई लड़कियां मरती थी कॉलेज के दिनों में।’’

देखो सच्चाई कड़वी होती है, भले ही लड़कियां कितने ही अति सुंदर लड़के की तरफ आकर्षित हो जाए लेकिन शादी उसी व्यक्ति से करना पसंद करती है, जिसके साथ उन्हें अपना कोई भविष्य दिखे, तो अभी भी देर नहीं हुई है तुम गंभीर होकर अपना काम करो और ज़िंदगी में कोई मुकाम हासिल करो, देखो फिर तु्म्हारा भी जीवन कैसे नहीं बदलता है, या फिर जो तुम कर रहे हो उसमें ख़ुश रहना सीख लो, कम से कम जो लड़की तुम्हें पसंद करेगी वो तुम्हारे स्वाभाविक रुप में तुम्हें पसंद करेगी, ना कि जो तुम नहीं हो उसके लिए तुम्हें पसंद करेगी।’’

सच कहा दीदी खुद को खुद की खुशी के लिए ही बदलना चाहिए ना कि किसी और के लिए तभी हम जीवन में ख़ुश रह पाएंगे।

शिल्पा रोंघे

 © सर्वाधिकार सुरक्षितकहानी के सभी पात्र काल्पनिक है जिसका जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है।

 

मंगलवार, 17 अगस्त 2021

पुनर्विवाह

“क्या कर रही हो शैलजा ? ’’ नानी ने पूछा।

मैं इस गुड्डें और गुड़ियां की शादी कर रही हूं।‘’

अच्छा करों।’’

शादी -शादी खेल रही हूं। आज मेरी दोस्त नहीं आई ना, नहीं तो मैं उसके साथ ही बाहर खेलने जाती हूं, तो आज सोचा कि घर पर अकेले ही खेल लेती हूं।’’

 

शैलजा 10 साल की थी  तब से वो इन गुड्डे –गुडियों से खेला करती थी। जब वो 20 साल की थी तब फिर एक बार अपनी नानी के घर पहुंची और बोली वो गुड़िया कहां है जिससे मैं खेला करती थी।’’

ऐसी एक नहीं अनेक गुड़ियां और गुड्डें है, पूरी अलमारी भरी पड़ी हुई है। ये देखो।’’ नानी ने कहा।

किसने बनाई?” शैलजा ने कहा।

“ये मेरी मौसी ने बनाई थी। 12 साल की थी वो जब उसका ब्याह हुआ था,

बच्ची थी, उस वक्त बाल विवाह प्रचलन में था, तो  जल्दी उसका ब्याह हो गया था

उसकी बिदाई भी नहीं हुई थी कि उसके 15 साल के पति की बुखार से मौत हो गई।’’ नानी ने कहा।

“तो फिर उसका पुनर्विवाह नहीं हुआ।’’ शैलजा ने पूछा।

 “नहीं तब ये चलन में नहीं था, तब तो विधवा महिला को रंगीन कपड़ें भी पहनने को मिलते नहीं थे, सफेद साड़ी पहननी पड़ती थी और लंबे बाल भी नहीं रख सकती थी वो, ताकी कोई उसकी तरफ आकर्षित ना हो।’’

“ये तो गलत बात है।’’ शैलजा ने कहा।

“घर का काम खत्म करने के बाद जितना वक्त बचता था, उसमें वो मिट्टी के गुड्डें और गुड़िया बनाया करती थी।

करीब 500 गुड्डें और गुड़िया बना चुकी थी वो, जिसे उसने सारे रिश्तेदारों को उपहार में दे दिया।

अब तो वक्त काफी बदल चुका है, अब तो काफी आजादी है महिलाओं को।’’ नानी ने कहा।

पूरी तरह से अभी भी बदलाव नहीं आया है, आज भी लोग एक महिला के पुनर्विवाह को लेकर सवाल उठाते है।’’ शैलजा ने कहा।

चलो कुछ खाते है, तुम तो बहुत गहराई वाली बातें करने लगी, चलो मुझे एक कप चाय बनाकर दो।’’ नानी ने कहा।

हां देती हूं, लेकिन इस बार गुड़िया साथ लेकर जाउंगी गुड्डें और गुड़िया के खेल में बहुत मजा आता है मुझे।

एक बार फिर उनकी शादी करवाउंगी।’’  शैलजा ने कहा।

 

“अगली बार तुम आओगी, तो बड़ों की तरह व्यवहार करोगी, ऐसी उम्मीद रख सकती हूं ना मैं तुमसे ? नानी ने पूछा


"हां रख सकती हो लेकिन नारी मुक्ति पर लिखे मेरे भाषण के लिए तैयार रहना।’’ शैलजा ने कहा

“अरे हां बाबा भाषण क्या तुम तो पूरी किताब ही लिख डालो।’’ नानी ने कहा

ऐसा कहकर दोनों धीमे से एक दूसरे की तरफ देखकर मुस्कुराई।

शिल्पा रोंघे

 

 © सर्वाधिकार सुरक्षितकहानी के सभी पात्र काल्पनिक है जिसका जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है।

 

गुरुवार, 5 अगस्त 2021

रूहानी प्यार



कितने प्यारे इंसान हो आप, आपकी मुस्कान भी बहुत अच्छी है।’’

धन्यवाद ये सुनकर सचिन की खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा।

दिशा की कथक नृत्य के वीडियो उसके फेसबुक पेज पर डाले गए थे।

कितनी सुंदर थी वो विशाल नयन और चंद्रमा से भी ज्यादा उजला उसका चेहरा।

सचिन श्याम वर्ण का तीखे नैन नक्श वाला लड़का था।

मन ही मन उसे चाहने लगा।

फिर उसने दस दिन बाद उसे मैसेज किया आपका नृत्य बहुत अच्छा है।

जवाब मिला “धन्यवाद।’’

क्योंकि वो उसके बगल वाले शहर में ही रहती थी

तो सोचा कि एक दिन मुलाकात हो जाए।

उसकी फंतासी को एक महीना हो चुका था उसे लगा वो भी उसे चाहती होगी क्योंकि कभी-कभी उसकी पोस्ट पर

उसका लाईक दिखाई देता था।

एक दिन उसने निश्चित किया कि वो उससे मिलने ज़रुर जाएगा।

जैसे- तैसे उसने उसके घर का पता ढूंढ लिया।

तभी उसकी छोटी बहन चौंक कर बोली

“एक अनजान इंसान को इस तरह बिना बताए किसी के घर नहीं आना चाहिए।’’

वो बोला “आपकी बहन से तो कभी- कभी बात हो जाती है।’’

“इसका अर्थ ये तो नहीं वो तुमसे प्रेम करती है, पहले सहमति तो ले लेते मिलने से पहले। वो तो अच्छा है कि अभी हमारे माता पिता घर से बाहर गए हुए है, नहीं तो तुमको देखकर नाराज हो जाते।’’

“क्या मैं एक बार तुम्हारी बहन से मिल सकता हूं ?”

“वो तो एक साल से कोमा में है”

“क्या लेकिन वो तो मुझसे बात करती है।’’ सचिन ने कहा।

“जब उसकी तबीयत बिगड़ रही थी, तो उसने कहा था कि मैं उसके पुराने वीडियो पेज पर डालती रहूं और जो भी उसे मैसेज करे उसे धन्यवाद देना ना भूले, और एक दिन वो सचमुच कोमा में चली गई।’’

“उसे कब होश आएगा ?”

“पता नहीं कुछ कह सकते शायद कुछ दिन, कुछ हफ्ते या फिर साल कुछ नहीं कहा जा

सकता है।” दिशा कि बहन ने कहा।

कुछ देर बाद सचिन उस अस्पताल पहुंचा जहां वो भर्ती थी।

दिशा का चेहरा पीला पड़ चुका था और काया सूख चुकी थी, वो ज्यादा देर वहां खड़ा नहीं रह सका।

आंखों में आंसू लेकर वो वहां तेजी से निकल आया और सोचने लगा कि उसने तो वो बात सोच ली कि जो कही भी नहीं गई, क्या होगा अफसाने का जो उसने मन ही मन रच लिया था खैर दोष दे भी तो किसे आनलाईन मायाजाल ही ऐसा है कि इंसान फंतासी को ही हकीकत समझ लेता है और एक दिन उसने अपना सोशल मीडिया प्रोफाईल ही डिलिट कर दिया ये सोचकर कि अब फिर किसी ख़ूबसूरत फ़साने से दिल लगाकर अपने दिल को दर्द के समुंदर में फिर से डूबा ना बैठे।

शिल्पा रोंघे

© सर्वाधिकार सुरक्षितकहानी के सभी पात्र काल्पनिक है जिसका जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है।

मंगलवार, 27 जुलाई 2021

कयास



मधुमिता और स्मिता बहुत अच्छी सहेलियां थी। दोनों में खूब जमती थी।

एक दिन मधुमिता ने स्मिता के को एक प्रोफेशनली क्वालिफाइ़ड, सुंदर और सुशील लड़के की तस्वीर दिखाई।

तभी स्मिता के चेहरे पर उदासी आ गई वो कहने लगी हां तुम फोटोजनिक हो ना, तुम्हारे फोटो देखकर ही तुम्हें लोग पसंद कर लेते होंगे ना।’’

मधुमिता ने कहा स्मिता मैं भी ठीक-ठाक दिखने वाली लड़की हूं, तुम्हारे जैसी सुंदर और गोरी लड़की के मन में ये विचार क्यों आ गया? ’’

यार मुझे तो एक भी लड़का पसंद नहीं आया, ना मुझे किसी ने अभी पसंद किया।’’ स्मिता ने कहा 

मधुमिता ने कहा हम चाहे कितने ही योग्य क्यों ना हो, हम सबको पसंद आए ऐसा ज़रुरी नहीं है, इसका अर्थ ये नहीं है कि किसी के पसंद करने या ना करने से हमारे योग्यता तय होती है।हमें ना और हां दोनों ही चीज़ें सुनने के लिए तैयार रहना चाहिए और ये शब्द खुद भी कहने में झिझक महसूस नहीं करना चाहिए।’’

बहुत आसान है, पहले मुझे तुम अपनी जगह रखकर देखो।’’ स्मिता ने कहा।

“हां, तुमको ही रखा है, उस लड़के को तुम्हारी तस्वीर भेज दी है जो तुमने मुझे दी थी और उसने तुमको पसंद भी कर लिया है और तुमसे मिलना भी चाहता है। अगर तुमको पसंद हो तो बात आगे बढ़ाती हूं।’’

“और तुम्हारे लिए ?”

“मेरी चिंता मत करो, शायद वो तुम्हारे लिए ही बना हो, तुमको तो पता है कि मुझे बड़ी देर लगती है किसी को पसंद करने में, मुझे समझना हर किसी के बस की बात नहीं हैं।’’

स्मिता को लगा सचमुच कयास लगाना कितना गलत होता है, जब कोई सचमुच आपके बारे में अच्छा सोच रहा हो उस इंसान के बारे में। ये अच्छी खासी दोस्ती में दरार डाल सकता हैं। स्मिता ने हल्की सी मुस्कान के साथ मधुमिता को गले लगा लिया।

शिल्पा रोंघे

© सर्वाधिकार सुरक्षित, कहानी के सभी पात्र काल्पनिक है जिसका जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है।

बुधवार, 21 जुलाई 2021

घनी पलकें


 

 

राधिका और उसकी सहेली रसिका एक दिन किस्मत देखने वाले एक इंसान के पास गए। वैसे राधिका का इन बातों पर ज्यादा यकीन नहीं था, क्योंकि रसिका जिद कर रही थी, तो वो चली गई।

वो इंसान बड़े-बड़े बालों वाला था, और ढीले ढाले कपड़े पहना था।

अच्छा बताओं कि मुझे चाहने वाला साथी कैसा होगा।’’  

राधिका और उसकी सहेली रसिका एक दिन किस्मत देखने वाले एक इंसान के पास गए। वैसे राधिका का इन बातों पर ज्यादा यकीन नहीं था, क्योंकि रसिका जिद कर रही थी, तो वो चली गई।

वो इंसान बड़े-बड़े बालों वाला था, और ढीले ढाले कपड़े पहना था।

अच्छा बताओं कि मुझे चाहने वाला साथी कैसा होगा।’’ राधिका ने कहा।

जो भी होगा उसकी पलकों पर घने बाल होंगे और माथा बड़ा बस इतना ही बताउंगा। आगे तुम पर है पहचान सको तो पहचान लेना।’’

रसिका को तो उसने उस इंसान के सात जनम बता दिए लेकिन राधिका को पूरी बात नहीं बताई।

“अरे यार कितने लड़कों के माथे बड़े होते है और पलकें घनी, मैं कैसे पहचानूंगी, मैं किसी लड़के को एकटक नहीं देख सकती हूं ये पहचनाने के लिए।’’ राधिका ने कहा।

 

“हां यार सारी सभ्यता हम लड़कियों के लिए ही है जैसे एक लड़का अगर लड़की तरफ देखे तो रुमानी इंसान, बड़े फ़क्र से वो ये बताते है कि वो फ्लर्ट है।’’ रसिका ने कहा।

 

“जो तेरे लिए रिश्तें आते है उनकी तस्वीरें देख ध्यान से, हो सकता है किसी की पलके घनी हों।’’ रसिका ने कहा।

फोटो में इतना समझ में नहीं आता।’’ राधिका ने कहा।

इस बात को एक साल बीत गया।

एक दिन  रसिका ने पूछा “मिला कोई घनी पलकों वाला, नहीं यार।’’ राधिका ने कहा।

 

राधिका के बगल के फ्लैट में रहने वाला प्रीतेश उसके लिए सॉफ्ट कार्नर रखता था, लेकिन उसकी पलकें घनी नहीं थी। राधिका भी उसके लिए गंभीर नहीं थी, वो जब भी बात करना चाहता, हंसकर टाल देती थी।

एक दिन जब राधिका दो-तीन दिन शहर से बाहर गई और अपने घर लौटी तो अपने फ्लैट का ताला खोलने लगी तो देखा कि प्रीतेश उसके सामने खड़ा था उसका कुरियर लेकर।

“तुम नहीं थी, तो कुरियर वाला मेरे पास छोड़ गया।’’ प्रीतेश ने कहा।

तभी राधिका का ध्यान प्रीतेश पर गया तो उसकी पलकें अचनाक ही बहुत घनी-घनी नज़र आने लगी।

तो राधिका ने पूछा “तुम्हारी पलकें इतनी घनी कैसे।’’

 “वो मैंने कैस्टर आइल लगाया था तो हो गई।’’

 प्रीतेश ने कहा।

“बहुत नुस्ख़े पता है तुमको ख़ुबसूरती के, जो मुझे लड़की होकर भी नहीं पता है।’’ राधिका ने कहा।

“वो तो है’’ कहकर वो वहां से निकल गया।

असल में उसने नकली आई-लैशेस लगा ली थी। घनी पलकों वाला राज वो भी जान चुका था।

तभी शाम को रसिका का फोन आया तो वो राधिका को बोली मिल गया वो घनी पलकों वाला इंसान।’’

“अच्छा कौन है वो ?’’ रसिका ने कहा।

“अरे बगल में छोरा, शहर में ढिंढोरा।’’ राधिका ने कहा।

“मतलब’’ रसिका ने कहा।

“कल आओ तुम्हें मतलब बताती हूं इसका।’’ राधिका ने कहा।

और दोनों सहेलियों की हंसी की आवाज ने कई दिनों की उलझन, सुलझने का सबूत दे दिया।

शिल्पा रोंघे

© सर्वाधिकार सुरक्षित, कहानी के सभी पात्र काल्पनिक है जिसका जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। 

रविवार, 18 जुलाई 2021

कागज पर लिखी बात

 


एक दिन रवि स्टेज पर खड़े होकर भाषण दे रहा था।

इस देश में भाषा रीति-रिवाज सब की दीवारें गिर जानी चाहिए।

क्यों हम ढो रहे है इनको ?

घर की बेटी और बेटा बढ़ा रहे परिवार का अभिमान लेकिन भूल गए है क्या होता है

प्यार। दिल की बस एक ही भाषा होती है वो है प्यार।’’

रवि और सीमा दो अलग भाषा बोलने वाले होते है लेकिन अच्छे दोस्त भी।

तभी स्टेज से उतरकर रवि सीमा से कहता है “शायद तुम्हें मेरी बातें अच्छी ना लगी हो, तुम्हारे रुढ़िवादी विचारों के हिसाब से जो नहीं थी। हमेशा टाल जाती हो जब मैं तुमसे कुछ पूछना चाहता हूं, दोस्त से बढ़कर भी क्या तुम मुझे कुछ मानती हो

सीमा कहती है “चलो मैं तुम्हारे दिल की बात का जवाब दूंगी लेकिन तुम्हारी मां के सामने।’’

“और तुम्हारे माता पिता?” रवि ने कहा।

“उनकी चिंता मत करो तुम्हारी मां की सहमति पहले है।” सीमा ने कहा।

“क्या मैं कुछ वक्त ले सकता हूं” रवि ने कहा।

सीमा ने कहा “बिलकुल लो।’’

रवि की दूसरे शहर में जॉब लग गई, एक दिन एक साल बाद दिवाली पर रवि का फोन आया और वो कहने लगा “तुम्हे दिवाली की बधाई।”

“तुम्हारी मम्मी ने क्या कहा मेरे बारे में।” सीमा ने कहा।

“अरे मेरी हिम्मत नहीं हुई खैर छोड़ो हम दोस्त थे और दोस्त रहेंगे।

अगर किस्मत में रहा तो ज़रुर मिलेंगे।’’ रवि ने कहा।

तभी सीमा ने सोचा कुछ बातें भाषण में ही अच्छी लगती है, लोग कह तो आसानी से देते है लेकिन खुद अमल में नहीं ला पाते है। इसलिए कहते है  कहने से ज्यादा कर्मों पर ध्यान देना ज्यादा ज़रुरी है। जब भी बोलो सोच समझकर बोलना चाहिए।

सीमा ने रवि से कहा चलो “तुम्हें किसी दिन भगवान हिम्मत दे, कि तुम अपने दिल की बात सावर्जनिक

मंच के बजाए घर पर भी कह सको, और हां तुम्हारा ईमेल आयडी दे दो, मेरी शादी का कार्ड भेजना है तुम्हें जो

10 दिन बाद है।’’

रवि को सुनकर बहुत बुरा लगा, कर भी क्या सकता था वक्त जो निकल चुका था।

तभी रवि ने सोचा कि वो जब भी पिता बनेगा तो अपने बच्चों को फ़ैसले लेने का हक उन्हें खुद ही देगा ताकि उनका प्यार भी आधा अधूरा ना रहे, ये बात उसने कुछ दिनों बाद अपनी मां को बताई।

तभी उसकी मां ने कहा “ये बात अगर तुम मुझे बताते, तो ये नौबत ही ना आती, खैर अब चिड़िया चुग गई खेत वाली बात हो चुकी है, अनुशासन का मतलब ये थोड़ी ही है कि तुम अपने दिल की बात भी मुझे ना बताओं, खैर जाने दो पुरानी बातें याद करने से कुछ नहीं मिलता है अब बदलाव तुमको ही लाना है।’’

शिल्पा रोंघे

 

 

 

व्यंग्य-आदर्श महिला बनने की ट्रेनिंग

  नीरज ने सोचा कि शहर की लड़कियों को आदर्श कैसे बनाया जाए, इसकी ट्रेनिंग दी जाए, तो कई लड़कियों की रुचि उसमें जगी। शहर की कई लड़कियों ने...